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अधूरेपन की कसक

लघुकथा
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डॉ. रामनिवास 'मानव'

मम्मी-पापा, आप मुझे नहीं देख पाते हैं, लेकिन मैं, अपने बीच की अदृश्य दीवार के पार, बिल्कुल स्पष्ट देख सकता हूं। मैं आपको उदास देखकर बहुत परेशान हो जाता हूं। मम्मी का रोना तो मुझसे बिल्कुल नहीं देखा जाता।

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मैं आप दोनों की स्थिति को समझ सकता हूं। जिनका इकलौता बेटा डॉक्टर न बन पाने के कारण आत्महत्या कर ले, इससे अधिक दु:ख की बात उनके लिए और क्या हो सकती है! लेकिन इसके लिए क्या अकेला बेटा ही दोषी होता है, मम्मी-पापा नहीं?

मैं जानता हूं, हर माता-पिता की भांति, आप भी मुझे डॉक्टर बनाना चाहते थे। इसीलिए कोचिंग के लिए मुझे कोटा भेज दिया। मेरी मोटी कोचिंग-फीस और दूसरे खर्चों के लिए आपको बैंक से लोन भी लेना पड़ा। मम्मी भी एक वर्ष का अवैतनिक अवकाश लेकर, किराये के मकान में, मेरे साथ कोटा में रही। लेकिन मैं आपके सपने को पूरा नहीं कर पाया।

आप दोनों ने, मुझे कोटा भेजने से पूर्व, एक बार भी मुझसे नहीं पूछा कि मैं क्या बनना चाहता हूं। डॉक्टर बनने की मेरी बिल्कुल इच्छा नहीं थी। मैं प्रोफेसर, मैनेजर, सीए, इकोनॉमिस्ट, जर्नलिस्ट, एक्टर, कुछ भी बन सकता था, लेकिन मेरे सपनों को आपने अपनी इच्छा के बोझ तले दबा दिया।

आपने एक बार भी नहीं सोचा कि डॉक्टर या इंजीनियर बनना ही सब कुछ नहीं है। हर बच्चा, अपनी इच्छा और योग्यता के अनुसार, कुछ बनना, जीवन में कुछ करना चाहता है, लेकिन माता-पिता डॉक्टर या इंजीनियर बनाने की चाह में उसे आत्महत्या करने को विवश कर देते हैं।

मैं नहीं जानता, हम किस लोक में हैं, लेकिन आत्महत्या करने वाले मेरे जैसे सैकड़ों छात्र यहां हैं। अकेले कोटा से छब्बीस छात्र इस वर्ष यहां आ चुके हैं तथा पता नहीं कितने अभी और आयेंगे।

माता-पिता न जाने कब समझेंगे कि बच्चों पर अपनी इच्छा थोपना, उन पर दबाव बनाना उचित नहीं है। यही दबाव उन्हें तनाव के रास्ते पर धकेल देता है और वे आत्महत्या करने जैसा कदम उठा लेते हैं।

मम्मी-पापा, मुझे क्षमा कर देना, मैं आपकी इच्छा पूरी नहीं कर पाया। आपका प्यार पाने के लिए मैं पुनः आपके बेटे के रूप में जन्म लेना चाहता हूं। लेकिन आपको भी मुझसे एक प्रोमिस करना पड़ेगा कि आप मुझे डॉक्टर या इंजीनियर बनाने की जिद नहीं करेंगे। बोलो, करोगे न प्रोमिस?

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