Tribune
PT
About the Dainik Tribune Code Of Ethics Advertise with us Classifieds Download App
search-icon-img
Advertisement

मध्यवर्गीय स्त्री की अंतर्कथा

पुस्तक समीक्षा
  • fb
  • twitter
  • whatsapp
  • whatsapp
Advertisement

लेखिका अंजली काजल का कहानी-संग्रह ‘मां डरती है’ समकालीन हिन्दी कथा-साहित्य में एक महत्वपूर्ण दस्तक है। इस संग्रह में कुल ग्यारह कहानियां संकलित हैं, जिनमें मुख्यतः मध्यवर्गीय परिवारों की स्त्रियों के मानसिक संघर्ष, सामाजिक दबाव और भावनात्मक पीड़ा को मार्मिक रूप से प्रस्तुत किया गया है।

कथानायिकाएं जहां एक ओर आक्रोश, भय, कुंठा और प्रताड़ना का सामना करती हैं, वहीं दूसरी ओर वे अपने अस्तित्व की लड़ाई भी दृढ़ता से लड़ती दिखाई देती हैं।

Advertisement

कहानी ‘अख़बार’ कस्बाई पृष्ठभूमि में रची गई है, जो पारिवारिक विवशताओं और सामाजिक सीमाओं के बीच जी रही स्त्री की आंतरिक व्यथा को उजागर करती है।

‘बारिश’ नामक कथा आज के ऊबाऊ और तनावग्रस्त दांपत्य जीवन की मनःस्थिति को अत्यंत प्रभावशाली ढंग से चित्रित करती है।

‘दुनिया जिसे कहते हैं’ प्रेम, संबंधों और त्रासदी के सहमेल से जीवन की कलात्मक प्रस्तुति देती है।

‘पहचान’ की नायिका अपने आत्मबल और संघर्षशीलता से समाज में अपनी अलग पहचान बनाती है। यह कहानी नारी सशक्तिकरण का एक जीवंत उदाहरण प्रस्तुत करती है।

संग्रह की शीर्षक कथा ‘मां डरती है’ विशेष रूप से उल्लेखनीय है। यह कहानी दर्शाती है कि भले ही आज की नारी शिक्षित और सबल हो गई हो, लेकिन एक मां के मन में अपनी बेटी की सुरक्षा को लेकर जो चिंता और डर बना रहता है, वह आज भी वैसा ही है।

अन्य कहानियां जैसे ‘इतिहास’, ‘पगडंडियां’ और ‘कसक’ — जातिगत भेदभाव, निर्धनता, आरक्षण, मानसिक हीनता और नारी-दमन जैसे विषयों को प्रभावशाली ढंग से उठाती हैं।

‘कोहरा’, जो इस संग्रह की अंतिम कथा है, परिवार के विघटन, पति की अकस्मात मृत्यु, पुनर्विवाह, वर्णभेद और बदलती जीवन-शैली से उपजी जटिलताओं को गहराई से प्रस्तुत करती है।

‘मां डरती है’ संग्रह की भाषा सहज, प्रवाहपूर्ण और जनसामान्य के निकट है। इसमें अंग्रेज़ी, पंजाबी और उर्दू के शब्दों का प्रयोग पाठ को और अधिक जीवंत बना देता है।

पुस्तक : मां डरती है लेखिका : अंजली काजल प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन, नयी दिल्ली पृष्ठ : 159 मूल्य : रु. 299.

Advertisement
×