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परंपरा और कर्तव्य के बीच का संघर्ष

पुस्तक समीक्षा
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मनोज कुमार ‘प्रीत’

नोबेल पुरस्कार विजेता स्पेनिश साहित्यकार गाब्रिएल गार्सीया मार्केस का यह उपन्यास ‘एक ऐलानी मौत का किस्सा’ एक विचित्र और स्वप्निल जासूसी कथा है, जिसमें प्रथम दृष्टि में ही अपराधी का चित्रण किया गया है। कहानी की नायिका आंखेला विकारियो मुख्य पात्र सान्तियागो नासार पर दुराचार करने का दोष लगाती है और फिर पूरी बस्ती में हत्या से पूर्व ही अस्पष्टता, अनिश्चितता और आनुषंगिक बातों का जोशीला और मर्मस्पर्शी वातावरण उभरकर सामने आता है।

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उपन्यास अपने अनेक पात्रों—पाब्लो विकारियो, लेआंद्रो पोर्नीय, कलोतिहद आर्मेन्ता आदि—पर धीरे-धीरे सक्रियता बनाए रखता है। इसमें कोलम्बियाई समाज का बाखूबी रहस्यपूर्ण चित्रण है, जो समुद्र, मछुआरों और उनके आस-पास के सांस्कृतिक परिदृश्य, जीवनशैली और संवेदनात्मक अद्वितीय प्रस्तुतीकरण को दर्शाता है।

लेखक आंखेला के कलंक और सान्तियागो की मृत्यु की रूपरेखा को पाठक वर्ग के लिए अभिज्ञेय बना देता है। जिन पात्रों का नायक-नायिका से कोई सरोकार नहीं, वे भी उसकी हत्या के हिस्सेदार दिखाई पड़ते हैं। कस्बाई वातावरण में हत्या के विषय में सब जानते हैं, लेकिन कब और कैसे यह घटना घटती है, इसे कोई नहीं स्पष्ट कर पाता है।

उपन्यास में लेखक ने समाज के रिश्तों, कर्तव्यों, परंपराओं और परिस्थितियों को बड़े ही सूक्ष्म तरीके से दर्शाया है, जिससे पाठक समाज के भीतर के मानसिक और नैतिक विवादों से भी परिचित हो पाता है।

मनीषा तनेजा ने बहुत कलात्मक ढंग से इसे इतना सरल अनुवाद किया है कि पाठक धाराप्रवाह में भूल ही जाता है कि यह स्पेनिश का अनुवाद है। अपरिचित और कठिन शब्दों को बाखूबी सहजता से अनूदित किया गया है। भाषागत हिन्दी में अच्छा व्याख्यान है और आम भाषा के उर्दू, फारसी और स्पेनिश शब्द पाठक को स्पष्ट रूप से समझ में आते हैं।

पुस्तक : एक ऐलानिया मौत का किस्सा मूल लेखक : गाब्रिएल गार्सीया मार्केस हिंदी अनुवाद : मनीषा तनेजा प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन, दिल्ली पृष्ठ : 120 मूल्य : रु. 199.

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