कमलेश भारतीय
विभाजन के दर्द को समेटे भीष्म साहनी की कहानी ‘अमृतसर आ गया है’, मोहन राकेश की ‘मलबे का मालिक’, मंटो की ‘टोबा टेक सिंह’ आदि आज भी विभाजन की त्रासदी को व्यक्त करती मानव मन को छूती हैं। अनेक उपन्यास भी लिखे गये जैसे यशपाल का ‘झूठा सच। पर आज पचहतर वर्ष बीत जाने के बावजूद और पीढ़ियों के अंतराल के बाद भी यह दर्द ज्यों का त्यों है।
हिमाचल के कथाकार हंसराज भारती का नया कथा संग्रह ‘सुकेती पुल सलामत है’ विभाजन व युद्ध की त्रासदी को सामने लाने में ऐसा ही एक और प्रयास है। इसमें कुल तेरह कहानियां हैं और इनका मुख्य आधार युद्ध और विभाजन ही है। खासतौर पर भारत-पाकिस्तान का विभाजन। लेखक बेशक हिमाचल से संबंध रखते हैं लेकिन किसी समय पंजाब के अमृतसर के निकट गांव में नौकरी करने से विभाजन की व्यथा कथा सुनते-सुनते इनमें गहरे डूबते चले गये और सारा दुख महसूस किया व इन कहानियों में उड़ेल डाला। मंटो के करीब आए और बॉर्डर भी देखा।
‘लाहौर’, ‘मैं और मेरा पाकिस्तान’, ‘शिमला समझौता’ और ‘रिफ्यूजी’ इसी मानसिकता से उपजी कहानियां हैं। इनमें भारत-पाक विभाजन, स्वतंत्रता के बाद की कटुता और कितने सारे ज़ख्म रिफ्यूजी जैसे सामने लाने की कोशिश की गयी है। ‘मिट्टी से दूर’ पर प्रसिद्ध लेखक सआदत हसन मंटो की कहानी ‘टोबा टेक सिंह’ का काफी प्रभाव देखने को मिलता है। ‘रिफ्यूजी’ कहानी में रोहित और शारदा के विवाह व प्रेम का सुखद अंत है तो ‘शिमला समझौता’ में युद्धबंदियों के दर्द को प्रमुखता से उठाया गया है।
सबसे सार्थक संदेश देने वाली कहानी है -बंदूक और बांसुरी। जहां बंदूक अहंकार का प्रतीक है तो बांसुरी प्रेम का प्रतीक। एक फौजी का बांसुरी बजाना, प्रेम करना और युद्ध में विकलांग हो जाने से बांसुरी न बजा पाने का दर्द सहज ही पाठक को छू लेता है। युद्ध क्यों और विभाजन किसलिए? धरती एक तो इंसान को बांटा क्यों गया धर्म के आधार पर? और यदि यह विभाजन सही था तो फिर पाकिस्तान में से बंगलादेश कैसे बन गया और क्यों? बहुत से विचार इन कहानियों के आधार बने हैं। शीर्षक कथा ‘सुकेती पुल सलामत है’ एक प्रेम कथा है और सचमुच प्रेम का पुल जब तक सही सलामत है तब तक यह दुनिया बहुत प्यारी है और रहने योग्य है। लेखक के शब्दों में पंजाबी व हिमाचली शब्द सहज ही आ गये हैं और खटकते भी नहीं। कहानियां वैसे भी लीक से हटकर हैं।
पुस्तक : सुकेती पुल सलामत है कथाकार : हंसराज भारती प्रकाशक : रश्मि प्रकाशन, लखनऊ पृष्ठ : 101 मूल्य : रु. 175.