केवल तिवारी
कॉलेजों-विश्वविद्यालयों में पढ़ाई के अलावा भी ‘बहुत कुछ’ होता है। एक ‘बहुत कुछ’ तो वह जो सब जानते हैं, मसलन-शोध, संगोष्ठी, सेमिनार वगैरह-वगैरह। एक ‘बहुत कुछ’ ऐसा भी है जो शायद वही जानता है जिसने इसे जीया है। हां, इस ‘बहुत कुछ’ के बारे में हम-आप कई बार सुनते रहते हैं। प्रो. किशोरीलाल व्यास ‘नीलकंठ’ की हालिया किताब ‘अथ विश्वविद्यालय गाथा’ में ऐसे ही कई पहलुओं को उजागर किया गया है। बाहर से बेहद आकर्षित करने वाले शिक्षा के इन मंदिरों में ‘बहुत कुछ’ होता है। कुल 16 अध्यायों वाली इस किताब को आत्मकथात्मक शैली में लिखा गया है और ज्यादातर अध्याय का व्यंग्यात्मक तरीके से मंत्रात्मक अंत किया गया है। जैसे-अथ विश्वविद्यालय, प्रिंसिपल, प्राध्यापक, छात्र महागाथा अथ यूनिवर्सिटिभ्यो नम:। या अथ यूनिवर्सिटी सेमिनार त्रासदी कथा:। या अथ उच्च शिक्षायै नम:।
विद्यार्थियों की उत्तर पुस्तिकाओं को जांचने का मामला हो या फिर किसी के पीएचडी करने का। किसी विषय या व्यक्ति पर सेमिनार-सभा करने का मामला हो या फिर छात्रों के आंदोलन का। हर मामले में विश्वविद्यालय में कैसी उठा-पटक होती है, उसका वर्णन लेखक ने बहुत ही कथात्मक रूप से किया है। जैसे कुछ विद्यार्थियों का अक्सर कक्षाओं की पढ़ाई रुकवा देना, प्रिंसिपल का निरीह बने रहना या फिर बहुत ऐंठन में रहना। अनेक मसले हैं जिन्हें पढ़ते-पढ़ते आपके जेहन में चित्र सा खिंचेगा। अंत में लेखक ने एक कविता के रूप में व्यंग्यात्मक टिप्पणी की है।
पुस्तक : अथ विश्वविद्यालय गाथा लेखक : प्रो. किशोरीलाल व्यास ‘नीलकंठ’, प्रकाशक : ग्रंथ विकास, जयपुर, पृष्ठ : 126, मूल्य : रु. 250.