रघुविन्द्र यादव
‘खुली ढोल की पोल’ त्रिलोक फतेहपुरी का नव प्रकाशित कुंडलिया छंद संग्रह है, जिसमें उनके 206 छंदों को संगृहीत किया गया है। कवि ने किसान, मजदूर, पर्यावरण, रिश्ते, नाते, नारी, भ्रष्टाचार, अन्धविश्वास, पाखंड, कोरोना, आतंक, नशाखोरी, गरीबी, महंगाई, मोबाइल, चुनाव, पाक, चीन, श्वान आदि विषयों तथा सम-सामयिक घटनाओं को अपना कथ्य बनाया है। इसके साथ ही धार्मिक, व्यंग्यात्मक और शृंगारात्मक छंद भी रचे हैं। देशज शब्द युक्त सहज सरल खड़ी बोली में रचे गए इन छंदों की विषयवस्तु कवि ने अपने परिवेश से ली है। मनुष्य की स्वाभाविक प्रवृत्ति को रेखांकित करते हुए कवि लिखता है :-
अभिमानी झुकता नहीं, लोभी करे न त्याग।/ क्रोधी धधके नर्क में, जलता है बिन आग।/ जलता है बिन आग, तंग औरों को करता।/ लेता झगड़ा मोल, बिना आई ही मरता।/ कहे दास त्रिलोक, छोड़ दे अब मनमानी।/ कर ले नीयत साफ़, क्रोध को तज अभिमानी।
समाज में नारी के प्रति बढ़ते अपराधों और उस पर समाज, पुलिस और प्रशासन का उदासीन रवैया नारी पूजक देश में बहुत पीड़ादायक है। कवि ने छंद के माध्यम से इसे बखूबी व्यक्त किया है।
इस पृष्ठीय पेपरबैक कृति का आवरण और छपाई सुंदर है, किन्तु प्रूफ की अशुद्धियों की भरमार है। बहुत से छंद अच्छे बन पड़े हैं, लेकिन फतेहपुरी ने छंद की बारीकियों को समझे बिना ही छंद रचे हैं, जिसके फलस्वरूप एक-तिहाई के लगभग छंद दोषयुक्त हैं। कुल मिलकर कवि में छंद लिखने की सामर्थ्य है, यदि छंद की पूरी और सही जानकारी लेकर छंद लिखते तो यह अधिक बेहतर कुंडलिया छंद संग्रह हो सकता था।
पुस्तक : खुली ढोल की पोल लेखक : त्रिलोक फतेहपुरी प्रकाशक : शब्दांकुर प्रकाशन, नयी दिल्ली पृष्ठ : 117 मूल्य : रु. 200.