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गमले में उगते जुमलों की बात

पुस्तक समीक्षा
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गोविंद शर्मा

डॉ. अशोक गौतम के प्रकाशित व्यंग्य संग्रह की सूची लंबी है। अन्य संग्रहों की तरह इस ‘तस्मै श्री घंटालाय नमः’ में संकलित तैंतीस आलेखों का आकार लगभग समान है, अर्थात‍् किसी भी आलेख में अनावश्यक विस्तार नहीं है।

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पहले आलेख में बिन आंसुओं के घड़ियालों का रोना-धोना है। वह रोने-धोने के बारे में ही है। बेचारे घड़ियालों के आंसू नेताजी उधार मांगकर ले गए थे, जो आज तक लौटाए नहीं गए। कैसे लौटाए, लौटाने की आदत ही नहीं। नेताजी वोट ले गए थे, बदले में आश्वासन पूरा करने का आश्वासन देकर। नेताजी ने कुछ नहीं लौटाया। जनता शवासन की मुद्रा में बनी रही।

आचार संहिता लागू हो और कुत्ते का मर जाना कोई विशेष बात नहीं है। कुत्ते की मृत देह के साथ वैसा ही होगा जैसा आदमी की देह के साथ होता है। न सिर्फ डॉक्टर पोस्टमार्टम करेंगे, बल्कि नेताओं के बयान उनसे ज्यादा चीरफाड़ करेंगे। ‘आचार संहिता में कुत्ते का स्वर्गवास’ आपने मीठी मुस्कान देखी होगी, कुटिल और व्यंग्यभरी भी, पर बदतमीज मुस्कान नहीं देखी होगी। दिख जाएगी। पढ़िए आलेख- ‘कोई इस दादू को समझाए, प्लीज’।

इन 33 व्यंग्य आलेखों के माध्यम से अशोक गौतम ने संपूर्ण समाज के सभी पक्षों का धारधार शबदों में चित्रण किया है। कोई नेता हो, पीएच.डी के बुखार से तप्त बुद्धिजीवी, एकता मच्छरों की हो, गमले में उगते जुमले हों, नई सरकार की ट्रांसपेरेंसी हो, आटा सामान्य हो, वीवीआईपी वाला या चमचागिरी के दौड़ते अश्व हों... कहने का मतलब है कि किसी भी पक्ष को निष्पक्ष, यानी अछूत नहीं रहने दिया गया। सभी पक्षों के पक्षी उड़ाए गए हैं।

सवाल है सिर्फ एक- क्या केवल अटपटा होना ही हास्य या व्यंग्य होता है, जैसा कि शीर्षक से लगता है? संग्रह में यत्र-तत्र कई रोचक शीर्षक हैं।

पुस्तक : तस्मै श्री घंटालाय नमः लेखक : डॉ. अशोक गौतम प्रकाशक : स्वतंत्र प्रकाशन, दिल्ली पृष्ठ : 127 मूल्य : रु. 299.

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