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रात से आगे की बात

कविता

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हमने भी देखे हैं उन अंधेरों के चेहरे,

जो हर दीये की लौ से

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खफा-खफा से रहते हैं।

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जब लगा कि अब

शायद उजाला नहीं होगा,

तभी कहीं से मन का सूरज

धीरे-धीरे उगता है।

डर अब भी है,

पर डर से लड़ने की हिम्मत भी है।

हम हार नहीं मानते,

जब तक कि उम्मीद की

आख़िरी सांस चलती है।

हमने सीखा है

कि रात चाहे जितनी भी गहरी हो,

अगर जागते रहो तो सुबह

तुम्हारी ही तरफ़ चलेगी।

अब लड़ाई सिर्फ

रात के खिलाफ़ नहीं है,

बल्कि उस सोच से भी है

जो कहती है –

‘सुबह नहीं आएगी।’

हमारे हिस्से का सूरज

हम खुद जलाएंगे,

हर अंधेरे को रोशनी से हराएंगे।

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