रतन चंद ‘रत्नेश’
घरेलू सेविका यानी कि कामवाली बाई पर जब तंज कसा जाता है तो वे ‘महारानी’ हो जाती हैं परंतु कई साहित्य-सम्मानों से नवाजी गई लेखिका प्रभा पारीक ने उन्हें महत्ता देते हुए उनके प्रति एक सद्यप्रकाशित पुस्तक समर्पित की है। राजा-महाराजाओं के समय से लेकर वर्तमान में घरों में काम करने वाली इन नौकरानियों की गहन पड़ताल ‘महारानी’ में हुई है जो अत्यंत रोचक बन पड़ी है।
यहां न सिर्फ कामवाली बाइयों से जुड़ी हर पहलू पर चर्चा है बल्कि उन पर अट्ठारह दिलचस्प कहानियां, प्रसंग और चर्चित ऐतिहासिक चरित्रों जैसे कि मंथरा, सैरंध्री, पन्ना धाय आदि का भी विस्तृत वर्णन है।
प्राचीनकाल से लेकर अब तक इनका कार्य कैसे-कैसे बदला, किस-किस रूप में प्रतिपादित हुआ, उनकी भूमिका कहां, कब और कैसे रही, उन्हें किस तरह की समस्याओं से दो-चार होना पड़ा, वे कितने प्रकार की होती हैं जैसी लगभग सभी जिज्ञासाएं यहां शांत होती हैं। कामवाली हमारी अनुपस्थिति में घर में क्या करती है, उन्हें काम पर टिकाए रखने के लिए हमें क्या करना चाहिए और यहां तक कि ये छुट्टी पर जाने के लिए क्या-क्या बहाने गढ़ती हैं, उसकी पूरी तालिका भी यहां दर्ज है। कोरोना काल में इनके महत्व और रसोई में पुरुष का विवश योगदान भी उभरकर सामने आया है।
लेखिका ने समाज के उस वर्ग का चित्र प्रस्तुत किया है जो सामान्यतः उपेक्षित और अछूता रहा है।
पुस्तक : महारानी लेखिका : प्रभा पारीक प्रकाशक : साहित्यागार, चौड़ा रास्ता, जयपुर पृष्ठ : 160 मूल्य : रु. 300.