राजकिशन नैन
उर्दू शायरी को शिखर तक पहुंचाने वाले उर्दू अदब के चोटी के 170 शायरों के व्यक्तित्व व कृतित्व को राजेन्द्रनाथ रहबर द्वारा संपादित ‘शायर हमारे’ नामक हालिया कृति में प्रामाणिक ढंग से पेश किया गया है। किताब में उर्दू अदीबों के बारे में बहुत-सी नई, खोजपूर्ण और पठनीय चीजें शामिल की गई हैं जो नई नस्ल के शायरों के काम की हैं।
कृति में पहला जिक्र हजरत निजामुद्दीन औलिया के शिष्य अमीर खुसरो का है, जिसने 71 वर्ष में ग्यारह बादशाहों का जलाल देखा और इनमें से सात की दरबारी की। वे गीत-संगीत, बोली-बानी और सूफी ख्याल के आराधक थे। खुसरो हिन्दवी और हिंदुस्तानी तहजीब के कायल थे। वे सितार के अलावा कव्वाली, तराना, नक्श, गुल व सहेला जैसी धुनों और कई रागों के जनक कहे जाते हैं। पहली ग़ज़ल उर्दू में खुसरो ने कही थी। अपने पीर की मौत से खुसरो को भारी धक्का लगा। उन्होंने वली की मृत देह को देखते ही रो-रोकर गाया—‘गोरी सोवे सेज पर, मुख पर डारे केस। चल खुसरो घर आपने, रैन भई चहुं देस।’ शेख जुहरूद्दीन हातिम का कलाम भी महफिलों में बड़े शौक से गाया व सुना जाता था। उनका एक शे’र देखिए—‘मजा दुनिया का अपनी जिंदगानी तक है ऐ हातिम, जो हम गुजरे जहां से हमने ये जाना कि जग गुजरा।’ सिराज औरंगाबादी 7 साल जंगलों और वीरानों में घूमते रहे और अंत में अध्यात्म की शरण ली। उनका एक शे’र यूं है— ‘मत करो शमअ्अ को बदनाम जलाती वो नहीं, आप सी शौक है पतंगों को जल जाने का।’ मुहम्मद तक़ी ‘मीर’ को बड़े शायरों में अव्वल गिना जाता था। जैसे गालिब ने कहा— ‘रेख्ता के तुम्हीं उस्ताद नहीं हो गालिब, कहते हैं अगले जमाने में कोई मीर भी था।’ नजीर अकबराबादी ने शायरी को शाही दरबारों से निकालकर सड़कों, गलियों और गांवों में ला खड़ा किया। किसी बादशाह की दरबारी उन्होंने नहीं स्वीकारी। नामवर शायर उनको खुदा का शायर कहते हैं। उनकी शायरी में ग्रामीण भारत की धरती की महक है। उनका एक शेर है— ‘जुदा किसी से किसी का गरज हबीब न हो, ये दाग वो है कि दुश्मन को भी नसीब न हो।’
नजीर साहब ने दो लाख से ज्यादा अशआर कहे मगर वो सब कलाम नष्ट हो गया। ख्वाजा हैदर अली ‘आतिश’ ने अमीरों और बादशाहों के कसीदे नहीं लिखे। उनका एक शे’र इस तरह है— ‘न गोर-ए सिकन्दर, न है कब्रेदारा, मिटे नामियों के निशां कैसे-कैसे।’ मिर्जा मुहम्मद रफी ‘सौदा’, सिराज औरंगाबादी, नासिख लखनवी, बहादुरशाह जफर, ‘जौक’ देहलवी और मिर्जा ग़ालिब के जीवन से जुड़े प्रसंग भी मर्मस्पर्शी हैं। मृत्यु के समय गालिब की जबान पर यह शेर था—‘दम-ए-वापसीं बर सरे राह है, अजीजो अब अल्लाह ही अल्लाह है।’ मोमिन खां मोमिन गैरतदार शायर, आला दर्जे के नजूमी व ज्योतिषी तथा शतरंज के जबरदस्त खिलाड़ी थे। मिर्जा गालिब ने उनके जिस शे’र पर अपना पूरा दीवान निसार कर देने की बात कही थी, वह शे’र यह है— ‘तुम मिरे पास होते हो गोया, जब कोई दूसरा नहीं होता।’
पुस्तक : शायर हमारे संपादक : राजेंद्र नाथ रहबर प्रकाशक : बेस्ट बुक बुडीज, नयी दिल्ली पृष्ठ : 584 मूल्य : रु. 599.