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जीवन के संघर्ष की ग़ज़लें

पुस्तक समीक्षा
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शमीम शर्मा

पुस्तक ‘नगर कराएगा विषपान मुझे’ एक ग़ज़ल संग्रह है। देवेंद्र मांझी ने अपनी ग़ज़लों के माध्यम से जीवन के कड़वे और मीठे पहलुओं को उजागर किया है। विषपान की बात करते हुए उन्होंने इस कृति के माध्यम से जनमानस की भावनाओं और अंतर्मन की पीड़ा को उकेरा है।

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देवेंद्र मांझी भूमिका में कहते हैं कि जीवन में हर व्यक्ति को कभी न कभी विषपान करना पड़ता है। शिव से लेकर सुकरात तक, सभी ने जीवन में किसी न किसी रूप में कड़वी सच्चाई को स्वीकार किया है। विष का प्रतीक केवल शारीरिक नहीं, बल्कि मानसिक और भावनात्मक स्तर पर भी प्रकट होता है। यह विष प्रेम में हो सकता है, या फिर किसी अभाव, हार या धोखे के रूप में। देवेंद्र मांझी ने इस विषपान को बहुत ही संवेदनशीलता और सरलता से व्यक्त किया है।

संग्रह में कुल 80 ग़ज़लें हैं और हर ग़ज़ल एक अलग अनुभव, अलग दर्द और अलग सुख की गवाही देती है। लेखन की शैली भावनाओं के प्रवाह से ओतप्रोत है। एक ग़ज़ल के शे’र में उनकी अभिव्यक्ति का पैनापन सबको अपनी ओर खींचता है : ‘ज़हर उगलते देख सभी ने सांपों को बदनाम किया/ वक्त पड़े पर इंसां भी तो इक विषधर बन जाता है’।

प्रेम की अभिव्यक्ति में निम्न शे’र इस संग्रह के सौंदर्य को और बढ़ाता है : ‘अधरों पे राधिका के जो वह नाम आ गया,/ तब बांसुरी बजाता हुआ शाम आ गया’।

यह शे’र दिल को छू लेने वाला एक मधुर भाव उत्पन्न करता है।

देवेंद्र मांझी की ग़ज़लें न केवल शब्दों की सुंदरता और सरलता से ओतप्रोत हैं, बल्कि वे अपने सामाजिक संदर्भों में भी गहरे संदेश देती हैं। कवि ने ग़ज़ल के पारंपरिक रूप को संरक्षित करते हुए उसमें आधुनिक जीवन के विविध पहलुओं को समाहित किया है। उनकी ग़ज़लें न केवल प्रेम, दर्द और क्षोभ को उजागर करती हैं, बल्कि वे जीवन के संघर्ष और समर्पण की गहराई को भी दर्शाती हैं। देवेंद्र मांझी ने अपने शब्दों से ग़ज़ल की परंपरा को जीवित रखा है और इसे एक नई दिशा दी है।

पुस्तक : नगर कराएगा विषपान मुझे ग़ज़कार : देवेंद्र मांझी प्रकाशक : पंछी बुक्स, नयी दिल्ली पृष्ठ : 107 मूल्य : रु. 300.

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