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छोटी विधा से खरी-खरी बात

पुस्तक समीक्षा
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जतिंदर जीत सिंह

महज दो-तीन पंक्तियों में अतुकांत काव्य शैली में संदेशपरक बात कहने की साहित्यिक विधा ‘हाइकु’ पर कशमीरी लाल चावला की पुस्तक ‘लोक हाइकु’ पंजाबी और हिंदी भाषा में है।

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पुस्तक लेखक ने रंग, मन की बात, नारी, घर-परिवार संबंधी विषय-वस्तु के जरिए कहीं व्यंग्य कसा है तो कहीं भावनात्मक पहलू को उजागर किया है। एक जगह चावला लिखते हैं, ‘लोगों का लहू, भूमि पर बिखरा, क्रांति आई है।’ इसी तरह एक अन्य हाइकु में वह लिखते हैं, ‘लोग यादें हैं, जैसे इंद्रधनुष, लोग रंग हैं।’

साहित्यकार कशमीरी लाल चुनावी रंग से भी रूबरू कराते हुए लिखते हैं, ‘नेता आये हैं, वायदों की गठरी, सिर पर बोझ।’ इसी तरह एक अन्य हाइकु में वह लिखते हैं, ‘भटक गया आज लोकतंत्र भी, नेता के हाथ।’ अकर्मण्यता से आगाह करते हुए चावला लिखते हैं, ‘हाथों बीच है लोगों की किस्मत, हाथ कृति है।’ उनकी रचना में एक भावुक चित्रण देखिए, ‘मां बांटती है, कोमल अहसास, खूब खजाना।’ परिस्थितियों से दो-चार होना भी बहादुरी होती है, शायद इसी ओर इशारा करते हुए उन्होंने लिखा, ‘लोक पीड़ा में जो हंसना जानता वह शूरवीर है।’

ऐसे ही विविध हाइकु पर कशमीरी लाल चावला ने सीधे सपाट शैली में पंजाब और देश को मुख्य मुद्दा मानते हुए कलम चलाई है। दोनों भाषाओं में एक पुस्तक तैयार करने का प्रयोग अनूठा है।

पुस्तक : लोक हाइकु लेखक : कशमीरी लाल चावला प्रकाशक : तर्क भारती प्रकाशन, बरनाला पृष्ठ : 64 मूल्य : रु. 150.

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