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सघन अनुभवों से बुनी कहानियां

पुस्तक समीक्षा
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केवल तिवारी

डॉ. मधुकांत की पुस्तक ‘मेरी शीर्षक कहानियां’ में 16 कहानियां शामिल हैं, जो विविध मनोभावों को व्यक्त करती हैं। इन कहानियों में ज्यादातर किरदार अध्यापक हैं और कथानक स्कूल तथा परिवार के परिवेश में फैला है। भाषा में हरियाणवी और पश्चिमी उत्तर प्रदेश की बोलियों का प्रयोग होता है।

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कहानी ‘बाल दिवस’ में एक छात्रा के ‘नेचुरल कॉल’ का मुद्दा उठाया गया है, जबकि ‘विद्याव्रत मर गया’ में एक आदर्श अध्यापक की भ्रष्टाचार की ओर फिसलने को दर्शाया गया है। ‘बालमन’ में शराब पीने वाले व्यक्ति की ‘यौन उत्कंठा’ का चरम और उसका एक बच्चे पर पड़ता अजीबोगरीब असर अभिभावकों को सोचने पर विवश करता है। इसमें पैरेंटिंग की सावधानी को लेखक ने समझाने की कोशिश की है।

कहानी ‘तिरंगा हाउस’ में शहीद के मासूम बेटे का मासूम आग्रह भावुक करने वाला है। कहानी ‘कटे गुलाब की गंध’ जहां उम्र के एक पड़ाव के बाद ‘कुछ इच्छाओं’ के मरने से पैदा होती खीझ को दर्शाती है, वहीं ‘मरजाणीए’ कहानी एक युगल के जीवनभर के प्रेम के भावुक अंत से खत्म होती है। कहानी ‘धुएं के बादल’ एक पुरानी हिंदी फिल्म की तरह है, जिसमें प्रौढ़ावस्था में पनपा प्रेम परिणति तक नहीं पहुंच पाता। ‘नयी सदी की ओर’ कहानी में किरदारों के खुलेपन पर यकीन नहीं होता। वैसे इसके अंत में एक सीख तो देने की कोशिश की गयी है।

लेखक की शैली नाटक रचनाओं जैसी है। बीच-बीच में दृश्य का वर्णन होता है। पुस्तक में प्रूफ की कुछ त्रुटियां रह गयी हैं। कहानी ‘विद्याव्रत मर गया’ में पहली चिट्ठी प्रभाकर के नाम होती है और अगली चिट्ठी में नाम भास्कर हो जाता है। हालांकि चिट्ठियों के जरिये लिखी गयी कहानी का अंदाज अच्छा है। इसी तरह एक जगह ‘मरी लाश’ लिखा है जो अटपटा लगता है। एक कहानी में एक ही किरदार कभी सुमित्र और कभी सुमित्रा हो जाता है।

पुस्तक : मेरी शीर्षक कहानियां लेखक : डॉ. मधुकांत प्रकाशक : साहित्यभूमि, नयी दिल्ली पृष्ठ : 120 मूल्य : रु. 495.

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