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अंधेरे में उजास की कहानियां

पुस्तक समीक्षा
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सरस्वती रमेश

जिंदगी में सुख-दुख की जाने कितनी ही कतरने बिखरी होती हैं। समय बीतने के साथ दुख की कतरने किरचियां बनकर टीसने लगती हैं और सुख जाने कहां उड़ जाता है। दुख की इन्हीं किरचियों को संग्रह ‘कोहरे से झांकती धूप’ की कहानियां कहती हैं, जिसे लिखा है नीरू मित्तल ‘नीर’ ने।

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नीरू मित्तल की कहानियों के पात्र बिल्कुल सामान्य जिंदगियों से आते हैं। आम लोगों के सुख-दुख भी लगभग एक जैसे होते हैं। कुछ सामाजिक विसंगतियों से उपजे तो कुछ संबंधों के दरकने से, कुछ वक्त की मार खाए हुए, कुछ किस्मत के सताए हुए। लेकिन दुख के घने कोहरे से भी उम्मीद का एक सूरज उगता है, जो जीने का हौसला देता है।

संग्रह की पहली कहानी ‘लकड़बग्घा’ एक अनाथ लड़की सलोनी की कहानी है। सलोनी पहाड़ों पर रहती है। पहाड़ों पर रहने वाले लोगों को लकड़बग्घे का डर रहता है। इसलिए सब समूह में आते-जाते हैं। पहाड़ों के लकड़बग्घे से तो लोग बच जाते हैं, लेकिन यदि आदमी के वेश में ही लकड़बग्घा हो तो उससे कैसे बचा जाए।

‘घूंट भर पानी’ एक हरिजन लड़के मंगलू की मार्मिक कहानी है। देश के संविधान ने तो दलितों को समान अधिकार से नवाजा है, मगर दलितों के प्रति समाज की सोच कितनी ओछी है, इसे इस कहानी को पढ़कर समझा जा सकता है।

कहानी ‘फर्क सोच का’ एक विकलांगता पर आधारित कहानी है। हमारा समाज विकलांग व्यक्ति को मन से भी विकलांग मान लेता है और उसे हमेशा मुख्य धारा से बेदखल करने पर तुला रहता है।

कहानियों में स्थानीय लोक संस्कृति और परिवेश का पुट है। पहाड़ी नदी और पर्यावरण चरित्रों के साथ गूंथे हुए हैं। बारिश, पहाड़, पहाड़ों की शाम, चढ़ाई, जंगल, गांव और निम्न मध्यवर्गीय परिवार की मुसीबतों के इर्द-गिर्द घूमती हैं संग्रह की कहानियां।

पुस्तक : कोहरे से झांकती धूप लेखिका : नीरू मित्तल 'नीर' प्रकाशक : बोधि प्रकाशन, नयी दिल्ली पृष्ठ : 112 मूल्य : रु़. 150.

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