भारत भूषण
‘अधूरे ख्वाब’ कहानी को पढ़कर यह समझा जा सकता है कि जिम्मेदारियां अगर अपनी जगह हैं तो ख्वाबों का संसार अपनी जगह। कुछ समय के लिए समझौता हो सकता है, लेकिन उन ख्वाबों को जिंदा रखा जाना चाहिए जिन्हें खुली आंखों से कोई देखता है।
‘इब्ने-मीर ख्वाबों की मंजिल’ पुस्तक में ऐसी ही उम्मीदों, आशाओं और ऊर्जावान बनाती कहानियों को पिरोया गया है। पेशे से शिक्षक अशोक जोरासिया की इन कहानियों को पढ़कर जीवन की हकीकत का सहज अहसास होता है। कहानी संग्रह की पहली कहानी ‘धरती के भगवान’ डॉक्टरों को समर्पित है। यह कहानी एक महिला डॉक्टर की उन्हीं भावनाओं को उजागर करती है, जिन्हें वह मानवता की सेवा के नाम पर भुला चुकी है।
‘क्योंकि हम भारतीय हैं’ कहानी श्रम और हार न मानने की भारतीय जिजीविषा को जाहिर करती है। पुस्तक की अन्य कहानी ‘तथाकथित नींबू-मिर्च’ में धार्मिक अंधता की पोल खोली गई है।
‘दोहरी जिंदगी’ यह सीख देती है कि अगर आप अपनी जिम्मेदारियों से वाकिफ हैं तो फिर किसी की इस नसीहत की परवाह नहीं करनी चाहिए कि आपको क्या करना है और क्या नहीं।
संग्रह की अन्य कहानियां ‘बाल विवाह’, ‘जय जवान जय किसान’, ‘दर्द’, ‘फर्श से अर्श तक’ मूल्यवान हैं और विभिन्न भावनाओं को समेटे हैं। कहानी ‘लेखक की वेदना’ एक बेहद सामयिक और सोच के संकट को शब्द देने वाली कथा है। एक पति को कविता, कहानी लिखने का शौक है, अखबार में छपती हैं तो पत्नी नाराज हो जाती है, क्योंकि पति की कविताओं में प्रेम-प्यार और मोहब्बत का वर्णन है, पड़ोसियों को लगता है कि पति का किसी अन्य महिला से प्रसंग चल रहा है, तभी वह ऐसी रचनाएं लिख रहा है।
इन कहानियों का शिल्प साधारण और बगैर किसी लाग-लपेट के अपनी बात कहने वाला है। कहानियों में शब्द संख्या कम है और उन्हें गैर जरूरी नहीं खींचा गया है, कुछ कहानियां तो एक सांस में पढ़ी जा सकती हैं।
पुस्तक : इब्ने मीर : ख्वाबों की मंजिल लेखक : अशोक जोरासिया प्रकाशक : साहित्यागार, जयपुर पृष्ठ : 80 मूल्य : रु. 200.