सत्यवीर नाहड़िया
आलोच्य कृति ‘बालवृंद की लघुकथाएं’ शिक्षा में रचे-बसे साहित्यकार मधुकांत की 135वीं तथा लघुकथा की 17वीं पुस्तक है, जिसमें बाल मनोविज्ञान पर आधारित 99 प्रेरक लघुकथाएं शामिल हैं।
इन लघुकथाओं में से गुजरते हुए विद्या मंदिरों से जुड़ी तमाम परिस्थितियां जीवंत हो उठती हैं, जिनमें कहीं शैक्षणिक विसंगतियां हैं तो कहीं छात्र जीवन की बहुआयामी चुनौतियां हैं। इन लघुकथाओं की खासियत यह है कि इनका समापन किसी समाधान या प्रेरणा के साथ होता है।
एक ओर जहां नकल पर आधारित लघुकथाएं लाटरी व बोर्ड परीक्षा, बिजली चोरी पर आधारित लघुकथा कुंडी, कोरोना काल पर और नहीं, धूम्रपान पर प्रेरणा, रक्तदान पर अपना दान, स्वच्छता पर विद्या-मंदिर, ईमानदारी पर टुंडा छोकरा प्रेरक संदेश छोड़ती हैं, वहीं आदर्श, मेरा विद्यालय, मेरा अध्यापक, जाति के लोग आदि लघुकथाएं व्यंग्य प्रधान हैं।
प्राइज, कोरी शिक्षा, विद्यालय, नकल बनाम अकल, तालियां, जलबूंद, लड़का लड़की, किशोर मन, होमवर्क, परीक्षा परिणाम आदि अनेक ऐसी रचनाएं हैं जो बालवृंद के मन की कथाएं हैं।
संग्रह की तमाम रचनाएं लघुकथा के मूल तत्वों को रेखांकित करते हुए प्रेरित एवं प्रोत्साहित करती हैं, किंतु संग्रह में वर्तनी की अशुद्धियां तथा एक ही लघुकथा को दो अलग-अलग शीर्षकों समझ (18) व चेतना (85) से देने की चूक अखरती है। पुस्तक का मूल्य भी ज्यादा है।
पुस्तक : बालवृंद की लघुकथाएं रचनाकार : मधुकांत प्रकाशक : मोनिका प्रकाशन, दिल्ली पृष्ठ : 112 मूल्य : रु.400.