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अहीरवाटी लहजे में लघु कविता

पुस्तक समीक्षा
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पिछले कुछ वर्षों में लघुकविता को लेकर हरियाणा प्रदेश में काफी काम हुआ है। हिंदी तथा हरियाणवी में अनेक लघुकविता संग्रह सामने आए हैं। इसी कड़ी में अहीरवाटी में प्रथम लघुकविता संग्रह के रूप में साहित्यकार समशेर कोसलिया ‘नरेश’ की कृति ‘खुल्ला पइसा’ प्रकाश में आई है, जिसमें रचनाकार ने पहेलियों के स्वरूप में 108 लघुकविताओं को शामिल किया है।

इस संग्रह में रचनाकार ने प्रारंभ में जहां अपनी पहेलियों की एक अन्य पुस्तक की कुछ पहेलियों को काव्य रूप दिया है, वहीं शेष तमाम रचनाएं विभिन्न प्रजातियों के पौधों को समर्पित हैं। शीर्षक कविता ‘खुल्ला पइसा’ की पहेली को देखिए—‘एक बार नरेश/ एक दुकान पर चीज लेन गयो/ दस पइसा की चीज लई/ दुकान आला ताहि दिया पचास पइसा/ दुकान आलो बोल्यो मेरे कनै चालीस पइसा कोन्या/ जै एक रपइयो देवा तै नब्बै दे दूंगो...’

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संग्रह की खास बात यही है कि हर लघुकविता में पहेली का उत्तर भी कविता में ही दिया गया है। अधिकांश लघुकविताओं के शीर्षक ही इन पहेलियों के उत्तर हैं, इसलिए यदि शीर्षक कुछ नवाचारी और अलग होते, तो पहेली का रहस्य अंतिम पंक्ति तक बना रहता।

संग्रह की भाषा बेहद सरल एवं सहज है तथा अहीरवाटी का ठेठ लहजा इन लघुकविताओं को विशिष्टता प्रदान करता है। कुल मिलाकर, इस लघुकविता संग्रह को वीरभूमि अहीरवाल की बेहद प्राचीन अहीरवाटी बोली के संरक्षण एवं संवर्धन के साथ लघुकविता के खजाने में अहीरवाल की सौंधी महक को शामिल करने के लिए याद किया जाएगा।

पुस्तक : खुला पइसा रचनाकार : समशेर कोसलिया ‘नरेश’ प्रकाशक : आनंद कला मंच, भिवानी पृष्ठ : 120 मूल्य : रु. 300.

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