स्त्री मन की संवेदनशील कहानियां
पुस्तक ‘कामनाओं की मुंडेर पर’ लेखिका गीताश्री का नव्यतम कहानी-संग्रह है। संग्रह की तमाम कहानियां दर्शाती हैं कि लेखिका की पैनी दृष्टि समाज की विकृतियों से हटी नहीं है।
गीताश्री की कहानियां मध्यवर्गीय दुःस्वप्न, दुरभिसंधियों, अभाव तथा आकांक्षाओं के अनेक नक्श तराशती हैं। संग्रह की प्रथम कहानी ‘अफसानाबाज़’ दिनभर संताप झेलते पहाड़ी लोगों के दुःख और छटपटाहट की अनेक परतें उधेड़ती है। ‘धर्मभ्रष्ट’ कहानी में एक बीमार वृद्धा की, अन्य धर्म की नौकरानी के प्रति बार-बार धर्मभ्रष्ट होने की आशंकाएं उद्घाटित हुई हैं। वह अपनी कहानियों में स्त्री मन की उलझी गुत्थी का रेशा-रेशा उधेड़ने का हुनर जानती हैं। उनकी कहानियों से पाठक प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता।
‘न्यायचक्र’ कहानी में भी आज के युग में जातिवाद की विभीषिका का चित्र उकेरा गया है। हमारी पूर्ववर्ती पीढ़ी आज भी इस कुंठा से मुक्त नहीं हो पाई है।
गीताश्री की कहानियों में स्त्री केंद्र बिंदु में रहती है। संग्रह की एक अन्य कहानी ‘मशान वैराग्य’ में गीताश्री ने हमारी प्रतिगामी रीतियों के ख़िलाफ़ बुलंद स्वर उठाया है। घर में एक अधेड़ महिला के पति की मृत्यु के बाद थोथी और घिनौनी परंपराओं का वहन कहानीकार के लिए असहनीय है। ‘कामनाओं की मुंडेर पर’ में तितलियों को पकड़ने की उम्र के छूटने की मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति हुई है। समाज की रूढ़ियों, वर्जनाओं और हाशिए पर खड़े लोगों पर गीताश्री की संवेदनशील कहानियां चौंकाती भी हैं और मनन करने को विवश भी करती हैं।
कथाकार अपनी अन्य कहानियों—‘स्वप्नभंग’, ‘महानगर की हवा’, ‘अपवित्र पानी’ तथा ‘जी-हुजूरी’ में भी समाज की अनेक विद्रूपताओं की नब्ज़ टटोलती हुई प्रतीत होती हैं। उनके पास समाज को अपनी सूक्ष्म-दृष्टि से देखने की अथाह क्षमता है और वे अपने कौशल से इन्हें भव्य कहानियों में तब्दील करने का हुनर जानती हैं। उनकी कहानियों की भाषा और शिल्प उन्हें और भी महत्वपूर्ण कथाकार बनाते हैं।
पुस्तक : कामनाओं की मुंडेर पर कहानीकार : गीताश्री प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन, नयी दिल्ली पृष्ठ : 168 मूल्य : रु. 250.