अशोक मलिक
कसौली में 1934 में जन्मे तथा जामनगर, दिल्ली और शिमला में पले-बढ़े रस्किन बॉन्ड लगभग छह दशक से मसूरी से लगती छावनी के लंढौरा इलाके में रहते हैं और अपना पूरा समय लेखन कार्य में लगाते हैं। 50 से अधिक पुस्तकों और 500 से ज्यादा कहानियों के लेखक की समीक्षाधीन पुस्तक ‘रस्टी चला लंदन की ओर’ उनकी अंग्रेजी पुस्तक ‘रस्टी गोज़ टू लंडन’ का अनुवाद है।
पुस्तक का कथानक खुद रस्किन बॉन्ड के जीवन की कथा से मिलता-जुलता है और रस्टी खुद बॉन्ड की छाया है। इस पुस्तक में बांड ने लेखक के रूप में खुद को स्थापित करने के संघर्ष की चर्चा की है। देहरादून के पहाड़ी इलाके का बालक रस्टी खुद को एक स्थापित लेखक के रूप में देखना चाहता है और चाहता है कि उसकी पुस्तकें देश-विदेश में बिकें। लंदन में वह दिन में क्लर्क की नौकरी और रात में लेखन करते हुए एक उपन्यास लिखने और उसके लिए प्रकाशक ढूंढ़ने में सफल रहता है, परंतु उसे अपनी आशा के अनुरूप सफलता नहीं मिलती।
अंग्रेजी पुस्तक की 2004 में लिखी भूमिका में लेखक ने बताया है कि 21 वर्ष की आयु में इंग्लैंड से लौटने पर उन्होंने कभी भारत नहीं छोड़ा। उन्होंने लिखा है जो एक साल मैं इंग्लैंड में रहा वह बहुत ही अकेला था और लगता था कि मुझे देश निकाला मिला हुआ है, इसलिए लंदन से लौटने पर मैंने फिर कभी विदेश जाने का जोखिम नहीं उठाया।
पुस्तक के पात्र किशोर वय के पाठकों के लिए निश्चय ही बहुत रोचक बन पड़े हैं, भाषा सरल और सुपाठ्य है। अनुवाद की प्रक्रिया में कई जगह अटपटे वाक्य अखरते हैं।
पुस्तक : रस्टी चला लंदन की ओर लेखक : रस्किन बॉन्ड प्रकाशक : राजपाल एंड सन्ज़ पृष्ठ : 128 मूल्य : रु. 185.