शशि सिंघल
किसी से छुपा नहीं है कि क्रांतिकारियों का जीवन कितने घोर संकट और तमाम मुश्किलों में बीता, जिसकी कल्पना मात्र से ही आज भी सिहरन पैदा हो जाती है। कुछ क्रांतिकारियों के नाम तो इतिहास के पन्नों में स्वर्णाक्षरों में दर्ज हो गये लेकिन कुछ ऎसे भी क्रांतिकारी हैं जो इतिहास के पन्नों में गुम होकर रह गये। डॉ. हरीशचन्द्र झण्डई ने अपने काव्य संग्रह ‘भूले-बिसरे क्रांतिकारी’ में कुछ वीर चेहरों को गुमनामी के अंधेरे से प्रकाश में लाकर सभी से रूबरू कराने का प्रयास किया है।
कवि डॉ. हरीशचन्द्र झण्डई ने काव्यात्मक शैली में क्रांतिकारियों का पुण्य स्मरण इस प्रकार किया है कि कविताओं की पंक्तियां क्रांतिकारियों के समूचे व्यक्तित्व और कृतित्व को उद्घाटित कर रही हैं। ‘मेरे देश के क्रांतिकारी’ शीर्षक से लिखी पहली कविता से संकेत मिलता है कि भारत सभ्यता, संस्कृति, संस्कारों का विशाल देश है। 1857 के क्रांतिकारियों से शुरू होकर यह पुस्तक 1947 तक की यात्रा करती है और अपनी इस यात्रा में भूले बिसरे 50 से अधिक क्रांतिकारियों का स्मरण करते हुए भारतवर्ष के विभाजन की त्रासदी का बखान किया है। ‘शहीद’ शीर्षक कविता की पंक्तियां- जननी है भारत मातृभूमि… सर्वथा प्रासंगिक है। प्रथम स्वतंत्रता सेनानी मंगल पांडे से शुरू होकर शेरअली, वीर नाहर सिंह, गेंदालाल दीक्षित, गोपी मोहन साहा, हेमू किलानी, प्रफुल्ल चाकी, राजेंद्रनाथ लाहिड़ी, खुदीराम, राजनारायण मिश्रा, यतीन्द्रदास मुखर्जी, सूर्यसेन, सोहनलाल पाठक, कन्हाई लाल, वीरेंद्र घोष, करतार सिंह सराभा, विष्णु गणेश पिंगले, वासुदेव बलवंत फड़के जैसे गुमनाम क्रांतिकारियों को काव्य संकलन में शामिल किया है। वहीं भारत की लगभग 16 वीरांगनाएं बाला मैना, माया घोष, सुहासिनी गांगुली, उर्मिला, मातंगिणी हाजरा, अजीजन बाई, बीना दास, कल्पना दत्त, उज्जवला मजूमदार, रानी गिड़ालू, कनक लता आदि भी संकलन का हिस्सा हैं, जो इतिहास के पन्नों में सिमट गई थीं।
पुस्तक : भूले-बिसरे क्रांतिकारी कवि : डॉ. हरीशचन्द्र झण्डई प्रकाशक : काव्या पब्लिकेशन्स, दिल्ली पृष्ठ : 112 मूल्य : रु. 170.