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सृजन में सांस्कृतिक मूल्यों को प्रतिष्ठा

पुस्तक समीक्षा

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ज्ञानचंद शर्मा

मनोज सिंह सनातन भारतीय धर्म और संस्कृति के उन्नायक लेखक हैं। इसका प्रमाण इनकी पूर्ववर्ती रचना ‘मैं आर्यपुत्र हूं’ से मिलता है, ‘मैं रामवंशी हूं’ इसकी दूसरी कड़ी है। इसे ‘त्रेता युग की प्रामाणिक कथा ‘और साथ ही नावेल भी कहा गया है। ‘मैं रामवंशी हूं’का कथ्य सात कांडों में विभक्त है। प्रथम कांड को पूर्व कांड की संज्ञा दी गई है। इस में दो सर्ग हैं—‘मैं आर्यपुत्र हूं’ और ‘संस्कार कथा’। मैं आर्यपुत्र हूं’ की पृष्ठभूमि में सतयुग है जहां अपौरुषेय वाणी को ऋषियों ने ऋचाबद्ध किया जो समस्त मानव जाति के कल्याण का पथ प्रशस्त करती हैं।

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द्वितीय सर्ग है ‘संस्कार कथा’। मनुष्य के जीवन में जन्म से मृत्युपर्यंत अनेक अवस्थाएं आती हैं। भारतीय मनीषियों ने इन्हें क्रमबद्ध कर जीवन-संस्कार की संज्ञा दी है। संस्कार से शुद्धि की धार्मिक क्रियाओं तथा अनुष्ठानों द्वारा व्यक्ति के दैहिक,मानसिक व बौद्धिक परिष्कार अभिप्रेत हैं। लेखक ने इस विषय का सर्वांगीण विवेचन किया है। दूसरा सार कांड है जिसके चार सर्गों में क्रमशः त्रेतायुग, श्रीराम और राम कथा, इक्ष्वाकु वंश और अयोध्या जी की सविस्तार चर्चा है।

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तीसरे, बाल कांड के बारह सर्गों में गर्भाधान से लेकर समावर्तन (विद्याध्ययन की समाप्ति पर गुरुकुल से लौटना) संस्कार तक के बारह संस्कारों की चर्चा है जिनमें राम कथा भी अनुस्यूत है। विद्याध्ययन की समाप्ति के साथ युवा गृहस्थ जीवन के लिए प्रस्तुत होता है। चतुर्थ, आश्रम कांड के तीन सर्गों में क्रमशः विवाह, गृहस्थाश्रम एवं भौतिक नाम के संस्कारों के वर्णन के साथ गृहस्थाश्रम की विशद चर्चा है।

पांचवें, अरण्य कांड में राम के वनगमन-मार्ग में पड़ने वाले ऋषि-आश्रमों का वर्णन है जिनमें अधिक महत्वपूर्ण हैं प्रयागराज में आचार्य शुनहोत्र और अत्रि ऋषि का चित्रकूट आश्रम। यहां उनका कुछ दिन का पड़ाव था। चित्रकूट से वे पंचवटी पहुंचे। छठा युद्ध कांड है। इसमें चार सर्ग हैं— ‘जनस्थान’ की प्रमुख घटनाएं हैं खर-दूषण वध और दूसरे सर्ग ‘अशोक वाटिका’ में रावण द्वारा सीता को बंदी बनाकर रखे जाने का वर्णन है। ‘लंका दहन’ एवं ‘फलश्रुति’ तीसरे और चौथे सर्ग में लंका दहन, राम-रावण युद्ध, रावण वध, राम की विजय और अयोध्या वापसी का विस्तृत उल्लेख है। सातवें कांड को उत्तर कांड शीर्षक दिया गया है। इसके चार सर्ग, वानप्रस्थ एवं संन्यास, रामोत्तर वंशवृक्ष, अंत्येष्टि और जलसमाधि रचना के उपसंहार रूप में आए हैं। ‘मैं रामवंशी हूं’ रचना के कथ्य को दो भागों में बांटा जा सकता है— विषय-प्रवेश और मुख्य प्रतिपाद्य। प्रथम और द्वितीय कांड पहले वर्ग में आते हैं और शेष पांच कांड दूसरे भाग में।

रचनाकार के अनुसार ‘रामायण’ इतिहास है। त्रेता युग की इस कथा का मूल स्वरूप क्या रहा होगा यह किसी के लिए भी अनुमान का विषय हो सकता है। आलोच्य पुस्तक वक्ता-श्रोता संवाद के माध्यम से कथ्य की अभिव्यक्ति है। हर बात तर्कसंगत शास्त्र सम्मत संदर्भों से पुष्ट हो कर सामने आती है। ‘मैं रामवंशी हूं’ प्राचीन सांस्कृतिक मान-मूल्यों की स्थापना करने वाला ग्रंथ है, इसी दृष्टि से इस को पढ़ा जाना चाहिए।

पुस्तक : मैं रामवंशी हूं लेखक : मनोज सिंह प्रकाशक : प्रभात प्रकाशन, नयी दिल्ली पृष्ठ : 350 मूल्य : रु. 500.

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