केवल तिवारी
आजाद भारत से पहले या अब तक अनेक अंग्रेज व्यक्ति ऐसे हुए जिन्होंने भारतीयता को आत्मसात कर लिया। किसी ने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लिया और ब्रिटिश सरकार की गलत नीतियों का विरोध किया तो कोई यहां आकर बस गया और यहीं का होकर रह गया। ऐसे ही लोगों में से कुछ नाम हैं चार्ल्स फ़्रीयर एंड्रयूज जिन्हें गांधीजी ने ‘दीनबन्धु’ का नाम दिया। इसी तरह रस्किन बॉन्ड, मार्क टली आदि। इन्हीं में से एक हैं वेरियर एल्विन। एल्विन ईसाई धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए आए थे, लेकिन छत्तीसगढ़ में आदिवासी समुदाय के बीच रहते-रहते उन पर शोध करने लगे और खुद भारत के होकर रह गए और आजाद भारत में कई महत्वपूर्ण पदों पर रहे। वेरियर एल्विन के काम पर अनेक शोध हुए हैं।
मानव विज्ञानी एल्विन के कार्यों पर प्रकाश डालने के उद्देश्य से ही करीब चार साल पहले दिसंबर के महीने में छत्तीसगढ़ के बस्तर में एक तीन दिन की कार्यशाला हुई। इस कार्यशाला में अनेक विद्वानों ने एल्विन पर अपने शोध पत्रों को तो शामिल किया ही, साथ ही अपने विचारों को भी रखा। उन शोध पत्रों और विचारों के आधार पर पुस्तक ‘ग्लिम्पसेस इंटु द वर्ल्ड ऑफ वेरियर एल्विन’ तैयार हुई। संपादन किया है एंथ्रोपोलोजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के पूर्वी क्षेत्र के प्रमुख केएम सिन्हा रॉय ने। सिन्हा खुद उसी संस्थान और शोध से जुड़े हैं जिसमें एल्विन की गहरी रुचि थी। इस पुस्तक में एल्विन के पुत्र ने भी अपनी राय रखी है साथ ही अनेक विद्वानों ने यह बताने की कोशिश की है कि कैसे एल्विन ने जनजातीय समुदायों के बारे में गहरी जानकारी एकत्र कर सबके सामने रखी। पुस्तक के अंत में कुछ फोटोग्राफ और उन इलाकों की सूची भी दी गयी है जहां-जहां एल्विन ने घूमकर जानकारी एकत्र की। एक शोधार्थी पर शोधकर्ताओं के काम को हिंदी और अंग्रेजी में एक साथ देने का यह कार्य सराहनीय है।
पुस्तक : ग्लिम्पसेस इंटु द वर्ल्ड ऑफ वेरियर एल्विन संपादन : केएम सिन्हा रॉय प्रकाशक : ज्ञान पब्लिशिंग हाउस, नयी दिल्ली एवं एंथ्रोपोलोजिकल सर्वे ऑफ इंडिया, कोलकाता पृष्ठ : 210 मूल्य : रु. 490.