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आंबेडकर के विचारों की प्रासंगिकता

पुस्तक समीक्षा
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आलोक पुराणिक

डॉ. भीमराव आंबेडकर भारतीय इतिहास के ऐसे विशिष्ट व्यक्तित्व हैं जिनका प्रभाव अर्थव्यवस्था, राजनीति, संविधान सहित अनेक क्षेत्रों में व्यापक रूप से देखा जाता है। धर्मांतरण के विषय को बाबा साहब आंबेडकर ने अत्यंत गंभीरता और विस्तार से संबोधित किया है। प्रो. रतनलाल ने धर्मांतरण संबंधी उनके विचारों को एक संकलन के रूप में प्रस्तुत किया है। ऐसा करके उन्होंने अकादमिक जगत, समाजशास्त्रियों, पत्रकारों और राजनीतिक शास्त्र के अध्येताओं के लिए एक महत्वपूर्ण कार्य किया है। इस पुस्तक में धर्म और धर्मांतरण से जुड़े विविध पक्षों पर बाबा साहब के विचारों का गंभीर विश्लेषण किया गया है।

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गौरतलब है कि बाबा साहब आंबेडकर ने हिंदू धर्म की आलोचना की और इसके लिए उन्होंने वैचारिक आधार एवं तर्क प्रस्तुत किए। 4 मई, 1936 को दिए गए एक प्रसिद्ध भाषण में उन्होंने कहा था— ‘जिस धर्म में समता, प्रेम और अपनत्व की भावना नहीं है, उस धर्म को मैं धर्म कहने के लिए तैयार नहीं हूं... उन्होंने चार वर्णों के चौखटे में हिंदू धर्म को सीमित कर रखा है। इस स्थिति में हिंदू धर्म के इस अनुदार ढांचे में हमारे लिए रहना संभव नहीं है। इसी कारण हमें धर्मांतरण की घोषणा करनी पड़ रही है।’

बाबा साहब हिंदू धर्म में समता की कमी को बार-बार रेखांकित करते थे। उन्होंने विभिन्न धर्मों का अध्ययन किया था। प्रो. रतनलाल लिखते हैं कि 1920 के दशक की शुरुआत में आंबेडकर का इस्लाम के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण था, क्योंकि उनका मानना था कि इस्लाम में सभी को अपनाने की क्षमता है। किंतु 1929 में उन्होंने भारत में कुछ मुस्लिम नेताओं के व्यवहार में असहिष्णुता का पक्ष देखा।

अजमेर के एक आर्यसमाजी सदस्य, हर बिलास सारदा ने केंद्रीय विधानमंडल में एक विधेयक प्रस्तुत किया था, जिसमें लड़कियों और लड़कों के लिए विवाह की न्यूनतम आयु क्रमशः 14 और 18 वर्ष निर्धारित की गई थी। यह ‘सारदा विधेयक’ के नाम से प्रसिद्ध हुआ। मुस्लिम सदस्यों ने इसका विरोध इस आधार पर किया कि यह इस्लामी सिद्धांतों के विरुद्ध है। आंबेडकर ने लिखा कि इस घटना ने उन्हें मुस्लिम समाज में सामाजिक सुधारों को लेकर पहले बड़े झटके का अनुभव कराया।

बाबा साहब ने आगे लिखा कि ‘जो व्यक्ति हिंदुओं के लिए अछूत है, वह मुसलमानों के लिए भी अछूत ही है।’ बुद्ध धर्म के विषय में बाबा साहब ने कहा था कि बुद्ध वर्णाश्रम धर्म में विश्वास नहीं रखते थे। उन्होंने यह भी कहा, ‘हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि हम सब समान हैं। मनुष्य और मनुष्य के बीच किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं होना चाहिए। जन्म के आधार पर कोई व्यक्ति श्रेष्ठ या निम्न नहीं हो सकता।’

बाबा साहब आंबेडकर के विचार तब भी प्रासंगिक थे, आज भी हैं और भविष्य में भी रहेंगे। भारतीय समाज की गहराई से समझ प्राप्त करने के लिए बाबा साहब का समग्र साहित्य पढ़ना आवश्यक है, जो अनेक खंडों में उपलब्ध है।

पुस्तक : धर्मांतरण : आंबेडकर की धम्म यात्रा संकलन एवं भूमिका : रतन लाल प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन, नयी दिल्ली पृष्ठ : 558 मूल्य : रु. 650.

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