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कहानियों में बदलते दौर के अक्स

पुस्तक समीक्षा
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कहानीकार मोहम्मद आरिफ़ द्वारा रचित समीक्ष्य कहानी संग्रह ‘बहुरूपिये’ में पांच लंबी कहानियों का संकलन है, जो कि संग्रह में ‘बहुरूपिये’, ‘कुत्ता-बिल्ली’, ‘मृत्युदण्ड’, ‘सिटिज़न रहमान’ व ‘दिलपत्थर’ शीर्षकों से सुसज्जित हैं। कहानियों में समाज व इसमें विचरने वाली मानव जाति के प्रतिनिधियों की विभिन्न प्रवृत्तियों, मानसिकताओं, आडम्बरों, मुखौटों, लोलुपताओं, लालच, स्वार्थपरकता, अस्तित्व के लिए जद्दोजहद के समानांतर आदमीयत का बोलबाला भी दिखाई देता है।

शीर्षक कहानी ‘बहुरूपिये’, रोचक कथ्य के साथ तालमेल बिठाते हुए, घटित होती छोटी-छोटी घटनाओं के माध्यम से उत्सुकता बनाए रखती है। यह कहानी तीन पात्रों—‘मित्र’, ‘उन्होंने’ व ‘उसने’ के इर्द-गिर्द बुनती चली जाती है। इसमें भाषागत ठेठपन की झलक मिलती है। कथ्य का तानाबाना एक मज़दूर, एक ज्वाइनिंग के लिए जा रहे प्रोफ़ेसर तथा उसके मित्र प्रोफ़ेसर के कांधों पर सवार होकर चलता है। ‘उसके’ — यानी मज़दूर — के मनमौजी स्वभाव, तिकड़मबाज़ी व उसकी पीड़ा को दर्शाने के साथ-साथ नित्य बदलते परिवेश व नित नए रोज़गार के साधनों में पैर पसारती आधुनिकता में उपजी त्रासदी को भी लेखक ने बड़े ही सहज भाव से अंकित किया है। यह कहानी सार्थक सन्देश देने में सफल रही है।

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कहानी ‘कुत्ता-बिल्ली’, वीरानी से जीवंतता की यात्रा पर निकले पात्रों की मंज़िल एवं सुकून पाने की तड़प लिए है। इसमें कुछ रिश्ते स्वयं को पाने की इच्छा लिए अपनों से दूर होते जा रहे हैं और इस तरह एक ऐसे चक्रव्यूह में फंस जाते हैं जहां वे रेल की पटरी के दो छोर नज़र आते हैं।

कहानी ‘मृत्युदण्ड’, धार्मिक कट्टरवाद एवं नफ़रत के ख़िलाफ़ आवाज़ बुलंद करती है। इसके कथ्य में दर्शाया गया है कि विषम परिस्थितियां उत्पन्न होने पर कैसे अपने ही पाला बदल लेते हैं और उस मोड़ पर छोड़ जाते हैं।

कहानी ‘सिटिज़न रहमान’, में दर्शाया गया है कि बहू व पोते-पोती वाली उम्रदराज़ महिला के गर्भवती होने पर शर्मिंदगी के कारण उस दंपत्ति का घर छोड़ना और फिर पीछे से उनके छोटे बेटे का जुलूस पर छत से पत्थर फेंकना कैसे नागवार हालात पैदा करता है।

कहानी ‘दिलपत्थर’, कोरोना काल के उस दौर में ले जाती है जहां मृत्यु के वीभत्स दृश्य पुनः पाठक की आंखों के सामने आ खड़े होते हैं, और हम एक ऐसे वातावरण में विचरने लगते हैं जहां आदमी की आदमीयत के गिरने का कोई अंतिम छोर नज़र नहीं आता।

पुस्तक : बहुरूपिये लेखक : मोहम्मद आरिफ़ प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन, नयी दिल्ली पृष्ठ : 144 मूल्य : रु. 250.

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