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विषयों की विविधता में यथार्थ बोध

पुस्तक समीक्षा

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कृष्णलता यादव

‘हवा में बनती हैं नई जगहें’ अलका सोनी की दूसरी पुस्तक तथा 60 रचनाओं वाला पहला लघुकथा-संग्रह है। कथ्य के मूल में हैं—राजनीति पर तीखे कटाक्ष, समाज की कड़वी सच्चाइयां, कन्या शिक्षा की टेर, संदेशपरकता, विषयों की विविधता तथा यथार्थ और आदर्श का सुमेलित गठबंधन।

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ठंड, जुड़ाव, कीमत, जिंदगी का डिस्काउंट, बात बनेगी, माटी प्रेम, संतुलित भोजन जैसी लघुकथाएं गागर में सागर सम हैं। ये रचनाएं देर तक पाठक के साथ रहती हैं तथा संवेदना के कोमल तंतुओं से बुनी गई हैं—दूरियां, आधी-आधी नींद, आंचल की छांव।

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समाज और राजनीति पर तीखा तंज कसती हैं—रैली, मजदूर, पापा का कोना, शहीद, गुड मॉर्निंग आदि लघुकथाएं। माई, मुस्कानों वाली दिवाली, यात्रीगण कृपया ध्यान दें जैसी रचनाएं बोधकथा-सा आभास कराती हैं।

अपनी मां के लिए बेटियां क्या होती हैं और कैसी होती हैं—इसका सुंदर खाका ‘बेटी की ज़िद’ रचना में खींचा गया है।

‘ऑनलाइन’ में महिला जगत पर लगाए गए प्रतिबंधों के प्रति प्रतिरोध दर्ज करती सघन अभिव्यक्ति है।

लेखिका ने लघुता की महत्ता को भलीभांति समझा है। अधिकतर लघुकथाएं एक पृष्ठ की हैं। भाषा में कसावट स्पष्ट झलकती है।

संग्रह का शीर्षक गहन अर्थ लिए हुए है। हालांकि, रचनाओं के शीर्षक-चयन, कथ्य के समापन बिंदुओं तथा पाठकीय स्पेस छोड़े जाने के क्षेत्र में और अधिक परिश्रम की आवश्यकता थी।

पुस्तक : हवा में बनती हैं नई जगहें लेखिका : अलका ‘सोनी’ प्रकाशक : मेधा बुक्स, दिल्ली पृष्ठ : 88 मूल्य : रु. 150.

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