प्रायः सभी विद्वान इस मत से सहमत हैं कि उपन्यास जीवन की तस्वीर होता है। यह भी सच है कि हर उपन्यासकार की शैली तथा प्रस्तुति की भाव-भंगिमा अलग होती है। ‘समंदर भर रेत’ अध्यायों में आवंटित नहीं, अपितु प्रसंगों में विभाजित है। लेखक संदीप मील ने एक जगह संकेत भी दिया है कि ‘हांडी में सब कुछ है’— और बिल्कुल ठीक ही तो कहा है। हांडी में से अलग-अलग प्रसंग, अलग-अलग किस्से निकलते हैं, जो राजस्थान के जीवन, यहां की परिस्थितियों, परंपराओं, जलवायु को बड़ी रोचकता के साथ प्रस्तुत करते हैं।
एक किस्से से इस उपन्यास की भंगिमा का पता चल जाएगा—
पति-पत्नी साथ-साथ चल रहे थे। एक वृक्ष पर काला उल्लू बैठा था। पास के गांव में अंधेरा छाया रहता था। पत्नी ने अपने पति से कहा कि सुना गया है कि पेड़ पर बैठा काले रंग का उल्लू गांव में अंधेरे का कारण है। उल्लू ने यह बात सुन ली। तभी वह युगल जाने लगा। उल्लू ने कहा—‘श्रीमान! यह मेरी पत्नी है।’ और उसने शरबती की अंगुली पकड़ ली। पति ने आश्चर्य से उसकी ओर देखा और कहा—‘अरे! क्या बात करते हो? यह मेरी पत्नी है।’
उल्लू ने कहा, ‘आप ठहरिए, मैं पंचों को बुला कर लाता हूं।’
पंच आए और बोले—‘अरे! हम आपकी शादी में गए थे और कितना बढ़िया भोजन किया था।’ यह कहकर पंच चले गए।
फिर उल्लू औरत को लेकर थोड़ी दूर गया, ठहर गया और बोला— ‘गांव में अंधेरा मेरी वजह से नहीं, बल्कि ऐसे पंचों की वजह से है। अब ले जाओ अपनी पत्नी को।’
इस प्रकार के अनेक किस्से इस उपन्यास में समाहित हैं।
कभी समुद्र था राजस्थान और पानी सूख गया तो रह गई रेत ही रेत। रेत के टीले, ढूह अपने में अनेक कहानियां समेटे हुए हैं। सामंतों की बर्बरता और लूट-खसोट, जनता को सबसे पहले सामंत की सेवा में लगना होता है। पानी का पहला घड़ा, लकड़ियों का पहला भार, दूध की पहली बाल्टी — सब कुछ सबसे पहले सामंत के घर पहुंचेगा, फिर लोगों के अपने घर।
विद्रोही हीरल की कहानी भी बड़ी रोचक एवं अर्थपूर्ण है। उसी की वीरता के कारण लोगों को इस प्रथा से मुक्ति मिलती है। अफीमी सामंत अपने कमरे में मृत पाया जाता है। आपसी रंजिश, ईर्ष्या-द्वेष, डर आदि का चित्रण मनोवैज्ञानिक ढंग से किया गया है।
विद्रोही सरीबा के गीत कथावस्तु की व्यंजकता को बढ़ाते हैं। अनेक पुरुष पात्र —पेमाराम, गुमान सिंह, प्रताप सिंह, जीत सिंह, दौलत सिंह आदि— अपनी-अपनी गाथा एवं संस्कारों को लेकर चलते हैं।
कुल मिलाकर यह उपन्यास राजस्थान के बदलते लोकजीवन और समृद्ध परंपराओं को जीवन्त पात्रों के जरिये चित्रित करता है।
पुस्तक : समंदर भर रेत लेखक : संदीप मील प्रकाशक : राजपाल एण्ड संस, नयी दिल्ली पृष्ठ : 90 मूल्य : रु. 350.