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मोह के धागों में गुंथे सतरंगी अहसास

पुस्तक समीक्षा
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हर संवेदनशील व्यक्ति निजी-पेशागत जीवन के अहसास शिद्दत से महसूस करता है, लेकिन उन्हें शब्दों में गूंथकर रचना का रूप देने का हुनर चंद लोगों को नसीब होता है। निस्संदेह, हर रिश्ता और संबंध मोह के धागों से बंधा होता है। उससे खट्टे-मीठे अहसास जुड़े होते हैं। शब्दरूप में घनीभूत होने पर ही कविता बनती है। वरिष्ठ पत्रकार हरीश मलिक की 28 कविताओं के संग्रह ‘मोह-मोह के धागे’ में ये अहसास बखूबी नजर आते हैं। रचनाओं में रिश्तों के आत्मीय अहसास हैं, तो पेशागत अनुभव से उभरे जीवंत बिंब भी हैं। खबरों की दुनिया में रहते हुए भी कवि ने हर जीव की संवेदना को रचनाओं से जोड़ा है। रचनाओं में जहां पेशागत विसंगतियां, मित्र संसार और हर दौर के द्वंद्व मौजूद हैं, वहीं प्रकृति-पक्षी प्रेम की सघन अभिव्यक्ति भी है।

रचनाओं में जहां तीन दशक की पत्रकारिता के गहरे अनुभव हैं, वहीं समाज के प्रति गहरी संवेदनशीलता भी मुखरित हुई है। संग्रह की पहली रचना ‘गर्भनाल’ मां को समर्पित करते हुए जैविक संरचना में अकथनीय योगदान और वात्सल्य को चित्रित करती है। जीवन में मां-बाप की उपस्थिति और उनके न रहने से जो निर्वात पैदा होता है, उस वेदना के बिंब रचनाओं में जीवंत हैं। संकलन की लंबी रचना ‘माफ करना दोस्त’ में सृजनात्मक अभिव्यक्ति से कवि ने अनूठा प्रयोग किया है। व्यंग्यात्मक शैली में अंग्रेजी की पूरी वर्णमाला के जरिये गहन अभिव्यक्ति हुई है।

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जीवन-पर्यंत खबरों को ओढ़ते-बिछाते हुए मिले गहरे अनुभवों की छाया प्रेम-छंद-एक और प्रेम-छंद- दो में मुखरित हुई है। इन मोह के धागों के आत्मीय अहसास रिश्तों में शिद्दत के साथ महसूस होते हैं। ये आत्मीय अहसास कहीं भावविभोर करते हैं, तो कहीं विसंगतियों को दर्शाते हैं। संकलन की रचनाएं पाठकों को गर्भनाल से शुरू होकर प्रेम-छंद, पौराणिक प्रसंगों, दोस्ती के रंग से होते हुए राजहंसों के मार्मिक और लंबे शोकगीत तक ले जाती हैं। रचनाकार का पहला प्रयास सराहनीय है।

पुस्तक : मोह-मोह के धागे रचनाकार : हरीश मलिक प्रकाशक : बुक लीफ पब्लिशिंग, भारत पृष्ठ : 100 मूल्य : रु. 250.

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