सत्यवीर नाहड़िया
हरियाणा प्रदेश की लोक नाट्य परंपरा यानी सांग के कथानक को आगे बढ़ाने वाली लोकगायन की विधा रागनी ही होती थी। भले ही उक्त परंपरा आज विलुप्ति की कगार पर है, किंतु रागनी का अस्तित्व आज भी बरकरार है। अब रागनी किस्सागोई से बाहर निकलकर सामाजिक मुद्दों पर केंद्रित हो रही है। यही कारण है कि प्रदेश में ‘छह राग, तीस रागनी’ की समृद्ध परंपरा आज भी जारी है। टेक, कली व तोड़ बंधी रागनियां अपनी छंदबद्धता के चलते विभिन्न चर्चित लोकधुनों पर प्रमुखता से गाई जाती रही हैं। आलोच्य कृति ‘घूंघट हरियाणे का’ ऐसा ही एक हरियाणवी रागनी संग्रह है, जिसमें माटी की महक को महसूस किया जा सकता है।
रचनाकार राजबीर वर्मा की यह पांचवीं तथा रागनी विधा में तीसरी कृति है। संग्रह में एक ओर जहां लोक किस्सों पिंगला-भरतरी, कृष्ण-सुदामा, सेठ ताराचंद, हल्दीघाटी-महाराणा प्रताप, राजा भोज, राम-रावण, यमराज-सावित्री, सीता-राम आदि पर आधारित रचनाएं हैं, वहीं हरियाणा की समृद्ध लोक संस्कृति पर अनेक रागनियां प्रभाव छोड़ती हैं।
रचनाकार ने सामाजिक विसंगतियों, झूठ-पाखंड धार्मिक उन्माद जैसे विषयों पर बेहतरीन शाब्दिक लताड़ लगाई है तथा जागरूकता के विषयों एड्स, पॉलिथिन, बालिका शिक्षा आदि पर कलम चला कर अपने दायित्व का निर्वाह किया है। एक बानगी :-
बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ, ना खाली नारा लाओ।
लाड-प्यार से पाल़ो उसनै, जम कै खूब पढ़ाओ।
रचनाकार ने समसामयिकी को भी अपनी रचनाधर्मिता का हिस्सा बनाया है,जिसे आधार कार्ड,धारा 370, नोटबंदी, मोबाइल क्रांति, कोरोना काल में देखा जा सकता है। कुछ रागनियों में वर्तनी व छंददोष है, किंतु इनका भावपक्ष बेहद उज्ज्वल है।
पुस्तक : घूंघट हरियाणे का रचनाकार : राजबीर वर्मा प्रकाशक : अनुज्ञा बुक्स, दिल्ली पृष्ठ : 120 मूल्य : रु. 200.