अशोक अंजुम
गली मोहल्ले गांव में, जाड़े का उत्पात
डर कर घर में जा छुपीं, अंजुम सातों जात
कुहरे में लथपथ हुए, खेत और खलिहान
नए साल पर लग रहे, गांव-गली सुनसान
कुहरे का तंबू तना नए साल का जश्न
उत्तर भीगें ओस से, आग खोजते प्रश्न
नये साल में क्या नया, दुखिया रहा विचार
धनकुबेर लाए इधर, नई नवेली कार
कहां रही कोई कमी, सोचे दुखी किसान
क्यों हैं गीले खेत में, सूखे-सूखे धान
सेंध लगाकर धंस रही, हर सू सर्द बयार
मैं कहता हूं ‘रपट लिख’, कांपे थानेदार
झबरा थर-थर कांपता, हलकू है मायूस
मौसम की दहलीज पर, खड़ा हुआ है पूस
तेरे सारे ताप की, खुल जाएगी पोल
शीतलहर है द्वार पर, दरवाजा मत खोल
सभी निशाने पर लगे, क्या राजा क्या रंक
कुहरा बनकर माफिया, फैलाए आतंक
स्वेटर, मफलर, टोपियां, इनर हो रहे फेल
बड़े प्राणलेवा हुए, शीतलहर के खेल
कांपें घर-दालान सब, जब सुविधाएं साथ
करते होंगे क्या भला, चौराहे-फुटपाथ?
वर्तमान से कांप कर, बन जाएं ये पास्ट?
बूढ़ी काकी का कहीं, जाड़ा ना हो लास्ट
बूढ़ी दादी देर से, तरस रहीं असहाय
मिल जाती इस शीत में, अदरक वाली चाय
काका ठिठुरें शीत से, कैसे करें बचाव
आमंत्रण देता रहा, सारी रात अलाव
होरी थर-थर कांपता, हलकू है मायूस
मौसम की दहलीज़ पर, खड़ा हुआ है पूस
ठिठक गई हर ज़िन्दगी, थमे सभी के पांव
कुहरे की चादर पहन, कहां छिप गया गांव
कुहरे के गुर्गे करें, सूरज का किडनैप
कहां गया किस ओर को, ‘अंजुम’ ढूंढ़ो मैप
पखवाड़े से था जहां, शीतलहर का राज
बूंदाबांदी आज की, हुई कोढ़ में खाज
कांपें घर-दालान सब, जब सुविधाएं साथ
करते होंगे क्या भला, चौराहे-फुटपाथ?
दुष्चरित्र मौसम हुआ, पल-पल बदले रूप
कोहासे की उम्र में, चटक रही है धूप
तन-मन भीगे रात-दिन, कुहरा गाये गीत
लगीं थिरकने पसलियां, रास रचाए शीत
आंगन में लेटे ससुर, करें धूप का पान
कमरे में ठिठुरे बहू, सिकुड़ी जाए जान
बढ़ते-बढ़ते यों बढ़ा, उफ! सर्दी का कोप
जैसे कर्फ्यू लग गया, भीड़ हो गई लोप
सर्दी ने ऐसे रखे, गली-गली में पांव
सब घर में दुबके पड़े, लगा ठिठुरने गांव
शीत-लहर का छा गया, जन-जन पर आतंक
घर से निकलें पांव तो, हवा मारती डंक
काका थर-थर कांपते, जाड़े का उत्पात
इक चादर कैसे कटे, सर्दी की ये रात
पलक झपकते हो रहा, दिन सारा काफूर
और रात लम्बी हुई, भोर बड़ी है दूर
झबरा भट्ठी में छुपा, हलकू खोजे आग
लगे पूस की रात ये-हो ज़हरीला नाग