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नाटकों में समय के सवाल

पुस्तक समीक्षा
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मनमोहन गुप्ता मोनी

अमृतलाल मदान का नाम नाटक के क्षेत्र में नया नहीं है। हाल ही में प्रकाशित उनका नाटक संग्रह ‘चमगादड़ महोदय’ चर्चा में है। इसमें दिव्य दण्ड (संपूर्ण मंचीय नाटक), खुल गया सिम सिम (दीर्घकालिक मंचीय नाटक) तथा चमगादड़ महोदय (एकांकी) शामिल हैं। सबसे बड़ी बात इन नाटकों की यह है कि इनमें सांकेतिक भाषा का प्रयोग किया गया है। लेखक ने कम शब्दों में बहुत कुछ कह दिया है। वर्तमान की स्थितियों का सजीव चित्रण दिखाई देता है मदान के नाटकों में।

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नाटक ‘चमगादड़ महोदय’ में प्रेमी-प्रेमिका जीवन के संध्याकाल में पुनः किस प्रकार मिलते हैं, यह बखूबी लेखक ने अपने इस नाटक में दिखाया है।

नाटक ‘खुल गया सिम सिम’ में न्याय प्रणाली की विडम्बनाओं का चित्रण है। इसकी कहानी का केन्द्र बिन्दु पति-पत्नी हैं जो एक लम्बे अर्से से तलाक का केस लड़ रहे हैं। नाटक ‘दिव्य दण्ड’ में सत्ता की विसंगतियों पर प्रहार किया गया है, सांकेतिक रूप से सत्ताधारियों की विडंबना पर भी चोट की है। अमृतलाल मदान के नाटकों की विशेषता यह भी होती है कि ये मंचन के योग्य होते हैं और कुछ सोचने को विवश भी करते हैं। विश्वास है कि रंगकर्मियों को ये नाटक उत्साहित करेंगे।

पुस्तक : चमगादड़ महोदय लेखक : अमृतलाल मदान प्रकाशक : अयन प्रकाशन, नयी दिल्ली पृष्ठ : 143 मूल्य : रु. 360.

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