विक्रांत परमार
दस लघु कहानियों के संग्रह ‘द ब्लैक मैजिक वुमन’ में बुद्धिमत्ता, भाव, बुद्धि और ज्ञान का सुमेल है। असमिया लेखिका मौशमी कंडाली ने अपनी लेखन प्रतिभा व शिल्प इसमें शिद्दत से उडेला है। हां आरंभ में ही, पाठक से एक छोटा सा आग्रह व सुझाव है – यदि औसत-आम कहानियों की ही चाहत है, तो यह संग्रह आपके काम का नहीं है। लेकिन सुविज्ञ-गंभीर पाठक को यह रचना रुचिकर लगेगी।
पुस्तक में शामिल हरेक कथा में विलगाव और पहचान के विषय व्याप्त हैं, विशेष रूप से उत्तर-पूर्व की महिलाओं से संबंधित, जो अपनी पढ़ाई, करिअर के जरिये सपनों को पूरा करने देश के बड़े शहरों में जाती हैं, लेकिन वहां उन्हें केवल एक वस्तु समझा जाता है– ‘एक बाहरी जगह से आयी कोई अजीब प्राणी’। ऐसे में उन्हें संघर्ष के साथ ही एक मानव के रूप में स्वीकार किए जाने की कसक रहती है, कि वे मात्र एक हाड़-मांस का टुकड़ा नहीं है, प्रत्येक कहानी पढ़ने पर यही अनुभूति होती है। शारीरिक शोषण से लेकर नस्लीय टिप्पणी तक का सामना करना लेकिन फिर भी कभी विचार की स्वतंत्रता का दामन नहीं छोड़ती हैं। संग्रह की एक कहानी में, नायिका ‘अक्सर उसके लिए उपलब्ध आकाश के छोटे से टुकड़े को देखती है’। मार्मिक चित्रण के साथ ही काव्यात्मकता व गीतात्मकता से पूरित है वह विचार प्रवाह।
गेब्रियल गार्सिया मार्केज़ से प्रेरित लेखिका अपनी एक कहानी में, जादुई यथार्थवाद विधा में गहराई से उतरी हैं। मार्केज, जिनकी महान कृति वन हंड्रेड इयर्स ऑफ सॉलिट्यूड है! कल्पना के मुक्त प्रवाह के चलते मौशमी की चिंतनधारा कहानियों को पठन में कठिन तो बनाती है, लेकिन फिर भी मनोरंजन और ज्ञानवर्धन की खासियत रुचि बनाए रखती है। प्रतीक, रूपक, उपमा, दृष्टान्त के साथ ही दंतकथाएं, जादू, मिथक व प्रतीकात्मकता से समृद्ध कहानियां प्रभावशाली हैं, लेकिन कई जगह गहराई समझना कठिन हैं।
इतिहास, किंवदंतियों और लोककथाओं पर पकड़ परिलक्षित होती है जहां-जहां लेखिका अपनी कथाओं में अंजनिपुत्र हनुमान, अग्निदेव, एकलव्य, अश्वमेध यज्ञ, धर्मयुद्ध, महाभारत आदि के बारे में बात करती हैं। कहानियों में संस्कृति, परंपरा, विश्वास और अंधविश्वास को उजागर किया गया है, वहीं त्योहारों और गीतों को भी स्थान दिया है।
लेखिका मौशमी अतीत को वर्तमान से जोड़कर, वास्तविक और अति यथार्थ को मिलाकर, अपनी बात को साधिकार शांत भाव और कलात्मक कौशल के साथ पाठक को स्पष्ट करती हैं। लेखिका अपने इस मत को दृढ़तापूर्वक प्रतिपादित करती है कि आप मेरे शरीर को गुलाम बना सकते हैं, लेकिन मेरी आत्मा और मेरे अस्तित्व को नहीं।
लेखिका समाज से लैंगिक असमानता को मिटाना चाहती हैं और नारी को पुरुषों की बराबरी में प्रतिष्ठित करना भी। तभी तो कहानी ‘अंधिकापर्व’ में वह सवाल उठाती हैं ‘औरत का शरीर ही क्यों बनता है समस्त अन्याय, अपमान और तिरस्कार का केंद्र?’ लेखिका के साथ ही श्लाघा की हकदार हैं इस संग्रह की अनुवादक प्रबीना राशिद; उनकी भाषायी प्रवीणता-विद्वता के बिना ये कहानियां क्षेत्रीय सीमाएं पार न कर पातीं।
पुस्तक : द ब्लैक मैजिक वुमन लेखिका : मौशमी कंडाली अनुवाद : प्रबीना राशिद प्रकाशक : पेंगुइन पृष्ठ : 183 मूल्य : रु. 299.