प्रेम चंद विज
‘सिलवटें’ कहानी संग्रह के लेखक वरिष्ठ कहानीकार विकेश निझावन हैं। निझावन ने कविता, कहानी, उपन्यास, बाल साहित्य, लघु कथा आदि पर भी लेखन किया है। दस कहानी संग्रह लिखकर उन्होंने बता दिया है कि कहानी उनकी प्रिय विधा है। प्रस्तुत कहानी संग्रह में पच्चीस कहानियां हैं जो कि हमारे जीवन व समाज के विभिन्न पक्षों का मनोवैज्ञानिक आधार प्रस्तुत करती हैं। कहानियों में मानवीय संवेदना, विसंगतियां और स्वार्थपरता के भाव हैं। कहानियां मनुष्य में मनुष्य ढूंढ़ती नजर आती हैं। खुद को सुनने व पड़ताल करनेे की कोशिश है। अधिकांश कहानियों में शहर के गली-मोहल्लों की पृष्ठभूमि है। कहानियों में व्यवस्था की संवेदनशून्यता भी है। ये सभी कहानियां देश के प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं।
कहानियों में मुख्य रूप से औरत और परिवार है। विसंगतियां हैं। लाचारी है। डर और सहम का वातावरण है। ये हम ‘गांठ’ कहानी की दीदी, ‘एक लकीर दर्द की’ की बिट्टू, ‘एक टुकडा जिंदगी’ की कावेरी, ‘पुनर्जन्म’ की शांता, ‘मज मेबाज’ की बच्ची और ‘उसकी मौत’ की रज्जो में देख सकती हैं।
अनेक कहानियों में मानवीय मन का मनोवैज्ञानिक विश्लेषण है। घर की समस्याएं, माता-पिता की लाचारी, पारिवारिक दबाव मिलता है। पुनर्जन्म कहानी में पिता मृत्यु के बाद बेटे में जन्म ले लेता है। पिता कहा करते थे कि घर के कामों में भी रुचि लिया करो। दफ्तर में समय बिताना और दोस्तों के साथ घूम-फिर लेना ही जिंदगी नहीं है। पुत्र पिता की इन बातों को सुनकर खीझ जाता है। पिता के चले जाने पर उसे ये सब बातें याद आने लगीं और उसने घर व बच्चों में रुचि लेनी शुरू कर दी। फिर जब वह आईने के सामने खड़ा होता है तो उसे अपने में ही पिता का अक्स दिखाई देता है।
‘गोलक’ कहानी में भी औरत की मनोदशा का वर्णन है। पति पत्नी को पैसा कमाने की मशीन मानकर नौकरी करने के लिए विवश करता है।
कहानी संग्रह में एक ऐसी औरत का भी उल्लेख मिलता है जो पति पर पहरा लगाए रखती है। पति पत्नी को खुश रखने के लिए बहुत कुछ दांव लगा देता है, मां-बाप को छोड़ देता है। आखिर में दुनिया को भी छोड़ देता है। ‘सिलवटें’ कहानी में सारिका की यही भूमिका है। श्रीधर समझौतों के बोझ से टूट जाता है। ‘एक टुकड़ा जिंदगी’ कहानी में भी पत्नी के व्यवहार के कारण भाई की विधवा की ठीक से सहायता नहीं कर पाता। बस मन ही मन में इच्छाएं दबाकर रह जाता है।
सामाजिक सरोकारों की भी कहानियां हैं। मज मेबाज और आश्रम ऐसी ही कहानियां हैं। समाज सेवा के नाम पर हो रहे पाखंड को उजागर किया गया है। ‘आश्रम’ कहानी में अनाथ बच्चे के साथ दुष्कर्म को दिखाया गया है। ‘मछलियां’ कहानी में साहित्य के खोखलेपन को उजागर किया गया है।
हर कहानी का रंग व भाव अलग है। सहज ढंग से बात कही गई है। इसलिए पाठक पात्र से बंध जाता है। भाषा सहज और सरल है। भावों को लेकर चलने वाली है। कुल मिलाकर कहानियां मानव व समाज की संवेदनाओं का मनोवैज्ञानिक रूप व्यक्त करती हैं।
पुस्तक : सिलवटें लेखक : विकेश निझावन प्रकाशक : प्रलेख प्रकाशन प्राइवेट लिमिटेड, मुंबई पृष्ठ : 168 मूल्य : रु. 450.