प्रगति गुप्ता
प्रकृति की मां रूप में कल्पना कर अपने सृजन को आकार देने के लिए कवि मन चिंतन-मनन कर भावों की गहराइयों में उतरता है। तब सृजन गहरा और अर्थपूर्ण होता है। कवयित्री कमल कपूर ने विभिन्न शीर्षकों के अधीन अपने भावों और संवेदनाओं का संग्रहण काव्य की तांका विधा में किया है। जीवन के व्यावहारिक सत्य कवयित्री की अभिव्यक्तियों में बुने हुए महसूस होते हैं।
‘फूल चुनती/ नर्म ख्याल बुनती/ गुनगुनाती/ मिश्री-सी मुस्कुराती/ प्रति पल ज़िंदगी’
वेदों की ऋचाओं से बेटियों की सुंदर कल्पना कर कवयित्री रचती हैं…
‘आएगा शीघ्र/वो दौर दुनियां में/गर्भ में जब/ नही मारी जाएंगी/ अजन्मी लड़कियां’
‘हैं सर्वोत्तम/ ब्रह्मा की रचनाएं/ चारों वेदों की/ ज्यों पावन ऋचाएं/ गीता-सी लड़कियां’
कहीं कवयित्री ने प्रतीकों और बिंबों के माध्यम से हृदय के भावों को उकेर कर गूढ़ता दी है तो कहीं अभिव्यक्तियों में अलंकारों का रस डाल पाठकों को मुग्ध किया है।
‘नभ से कूद/ नील झील जल से/ मुख धोकर/ फूलों सी मुस्कुराई/ नखरीली सुबह’
‘नभ से चल/ पहाड़ों पर टहल/ नदी में नहा/ आई है ठिठुरती/ भीगी सर्द सुबह’
यह सच है कि मौन में ब्रह्म का वास है। जो इस सत्य को महसूस कर लेता है वह स्वयं में गहरे उतरने लगता है। एक लेखक मौन में ही उत्कृष्ट सृजन करता है।
बाहरी शोर/ भीड़ से कट कर/ जाएं भीतर/ और करें शाश्वत/ मौन से साक्षात्कार’
कवयित्री ने अपनी अलंकृत शब्दावली से कई तांकों में एक साथ कई भावों को उकेरा है जो संग्रह को खास बनाता है।
पुस्तक : स्निग्ध सवेरे कवयित्री : कमल कपूर प्रकाशक : अयन प्रकाशन, नयी दिल्ली पृष्ठ : 126 मूल्य : रु. 250.