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पोस्टर

लघुकथा
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अशोक जैन

शहरभर में पोस्टरबाजी के खिलाफ एक अभियान छेड़ दिया गया। उप-राज्यपाल ने यह आदेश पारित करवाया कि यदि कोई व्यक्ति पोस्टर चिपकाता हुआ पकड़ा गया तो उसे सात दिन की साधारण कैद अथवा 100 रुपये का जुर्माना भुगतना पड़ेगा।

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उसे पोस्टर चिपकाते हुए रंगे हाथों पकड़ लिया गया। ड्यूटी पर तैनात सिपाही ने उसे पकड़ते ही रौब दिखाना शुरू कर दिया।

‘क्यों बे! जानता नहीं पोस्टर लगाना मना है!’

‘लेकिन साब...!’ वह आगे बोलता कि इससे पहले उसकी बात काटते हुए सिपाही ने डंडा जमीन पर दे मारा।

‘साब का बच्चा...! गंदी करते हो दीवारें। खाली दीवारें अच्छी नहीं लगतीं क्या? चल थाने!’

रास्ते में डंडे की घूरती आंखों ने उसका निरीक्षण किया और उसे धकेलते हुए थाने पहुंचा।

‘नंबर 24, क्या बात है? क्यों पकड़ा इसे!’

‘साब! पोस्टर चिपका रहा था और ऊपर से...’ अपनी ओर से नमक-मिर्च लगाने की डंडे ने भरपूर कोशिश की।

‘क्यों भई! जानता नहीं कि पोस्टर लगाना मना है!’

‘जानता हूं साब! पर आप मेरे पोस्टर की इबारत तो पढ़ें।’

‘क्या है उस पर?’ थानेदार ने झपटकर उसका पोस्टर खोला और पढ़ने लगा।

उस पर लिखा था— ‘आपका शहर सुन्दर है। इसे पोस्टर लगाकर गंदा न करें... निवेदन संतुष्टि शुद्ध घी बनाने वालों की तरफ से... जो बनाते हैं सौ प्रतिशत शुद्ध देसी घी।’

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