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मानवीय संवेदनाओं का चित्रण

पुस्तक समीक्षा
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हिन्दी साहित्य के काव्य जगत में निस्संदेह आज कविताओं की अपेक्षा दोहा छंद पर सराहनीय कार्य हो रहा है। दोहे, सटीक शब्दों के संयोजन के साथ, कम शब्दों में बड़ी बात कहने की सामर्थ्य रखते हैं। वे न केवल साहित्यिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं, बल्कि जीवन के मार्गदर्शन के रूप में भी विशेष स्थान रखते हैं।

प्रस्तुत पुस्तक में वरिष्ठ साहित्यकार रघुविन्द्र यादव के दोहों पर 24 सुप्रसिद्ध साहित्यकारों ने अपनी-अपनी भाषा और शैली में विस्तृत एवं विशिष्ट टिप्पणियां दी हैं। पुस्तक के संपादक डॉ. शैलेष गुप्त ‘वीर’ पुस्तक के विषय में लिखते हैं—

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‘गहरी हैं अनुभूतियां, मन का हरे विषाद/ दोहे श्री रघुविन्द्र के, पीड़ा के अनुवाद।’

दोहों में पारिवारिक, सामाजिक, राजनीतिक भ्रष्टाचार, रिश्तों-नातों से लेकर समाज में फैली अराजकता, अव्यवस्था, कुरूपता और शोषण जैसे विषयों पर प्रभावी कलम चलाई गई है।

जया चक्रवर्ती लिखती हैं कि— ‘रचनाकार ने वक्रोक्तियों के माध्यम से अपने दोहों में बात रखी है, वहीं दूसरी ओर विसंगतियों, विषमताओं और विद्रूपताओं के चित्रण द्वारा पाठकों का ध्यान खींचा है।

राजेन्द्र वर्मा दोहों के तीनों संग्रहों की विशेषता बताते हुए लिखते हैं कि— ‘सभी दोहों में मात्रिक छंद, लय, यति-गति, तुकांत, रस और अलंकार का विशेष ध्यान रखा गया है।’ संग्रह में पारिवारिक संबंधों, रिश्तों में पड़ती दरारों और नैतिक मूल्यों के पतन को दोहाकार ने अपने परिवेश में देखा-परखा है।

मानवीय संवेदना, समकालीन समस्याओं का चित्रण, पर्यावरण बोध, सौंदर्यबोध, मानवीय चेतना, नारी विमर्श और व्यंग्य-पुट इन दोहों में बखूबी देखा जा सकता है।

पुस्तक : रघुविन्द्र यादव के दोहा- सृजन के विविध आयाम संपादक : डॉ शैलेष गुप्त 'वीर' प्रकाशक : श्वेतवर्ण प्रकाशन, पृष्ठ : 204 मूल्य : रु. 299.

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