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नारी संवेदना का मार्मिक काव्य

पुस्तक समीक्षा

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सुदर्शन

डॉ. शशिकला लढ़िया द्वारा रचित काव्य-संग्रह ‘कितनी अहिल्याएं’ की कविताएं जीवन को गतिशील बनाती हैं। इन कविताओं में उन्होंने नारी को पति की सहचरी मात्र नहीं, बल्कि हर प्रयास से परिवार की बागडोर संभालने वाली, कर्तव्यपरायण और निष्ठावान भूमिका में प्रस्तुत किया है। वे समाज की प्रताड़नाओं को झिझक और संकोच के बावजूद सहते हुए भी ‘उफ’ तक न कहने वाली नारी की संवेदना को बड़े ही मार्मिक ढंग से अभिव्यक्त करती हैं।

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शशिकला की लेखनी इतनी सशक्त है कि उन्होंने नारी को ‘शक्ति पूजा’ के रूप में भी स्थापित किया है, जो जीवन के उतार-चढ़ावों और हर परिस्थिति का सहजता से सामना करती है। यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि उन्होंने नारी के अंतर्मन को बखूबी समझते हुए उसकी परतंत्रता, घुटन, वेदना, जीवनसाथी के वियोग का विलाप, स्पर्श की अनुभूति, आहट, जीवन में उसके फिर से लौट आने की प्रतीक्षा और संजोए गए सुनहरे सपनों के टूटने का अत्यंत मार्मिक चित्रण किया है।

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उनकी कविता ‘क्षणिका’ में नारी के एकाकीपन को व्यथा रूप में दर्शाया गया है, जहां न कोई रंग है, न उमंग। इसी प्रकार उनकी कविता ‘लेकिन क्यों’ में नारी की उस वेदना का वर्णन है, जिसमें बेटी को जन्म देने पर समाज की अवहेलना और अपमानों का सामना करना पड़ता है।

शशिकला के इस काव्य-संग्रह में उनकी प्रतिभा, वाणी में ओज और गंभीरता दोनों का समावेश है। उन्होंने अपनी कविताओं में शालीनता, सादगी और मार्मिक शब्दों से नारी के विभिन्न स्वरूपों का सजीव चित्रण किया है। आशा है कि कवयित्री आगे भी अपनी लेखनी से पाठकों का मार्गदर्शन करती रहेंगी।

पुस्तक : कितनी अहिल्याएं कवयित्री : डॉ. शशिकला लढ़िया प्रकाशक : आस्था प्रकाशन, जालंधर पृष्ठ : 143 मूल्य : रु. 325.

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