मुख्य समाचारदेशविदेशहरियाणाचंडीगढ़पंजाबहिमाचलबिज़नेसखेलगुरुग्रामकरनालडोंट मिसएक्सप्लेनेरट्रेंडिंगलाइफस्टाइल

कविताएं

छूटने की दिशा जिस तरफ मुझे जाना है, वह दिशा मेरे इतिहास की विपरीत दिशा में है। मेरी रोटी जिधर है, उस तरफ मेरा घर नहीं है। जिस तरफ मेरा घर है, उधर लौटने का मेरे पास एक भी मौका...
Advertisement

छूटने की दिशा

जिस तरफ मुझे जाना है,

Advertisement

वह दिशा मेरे इतिहास की

विपरीत दिशा में है।

मेरी रोटी जिधर है,

उस तरफ मेरा घर नहीं है।

जिस तरफ मेरा घर है,

उधर लौटने का मेरे पास

एक भी मौका नहीं है।

इस तरह, मेरे पाने की

दिशा और छूटने की दिशा

पता नहीं कैसे एक-दूसरे के

विपरीत हो गए हैं।

मैं चाह कर भी ये दूरी

नहीं मिटा पा रहा।

मैं जमीन के लिए तरसता हूं,

जमीन मेरे लिए तरसती हुई

बंजर हुई जाती है।

हद है लोग जो कहते हैं —

आजकल बारिश कम हो रही है!

जो समय बदलते हैं

घड़ी की सुइयों के बीच भी

अंधेरा रहता है।

शाम होने के बाद

वह धीरे-धीरे

गहराने लगता है।

चंद्रमा की चमक

उसकी रफ़्तार पर नहीं पड़ती।

शायद इसीलिए

बहुत रात के बाद

उसके चलने की आवाज़

और तेज हो जाती है—

जैसे अपने हिस्से की

रोशनी मांग रही हो,

हालांकि वह कभी

मिलने वाली नहीं।

फिर भी बल्ब जलाने से

घड़ी का चेहरा

खिल जाता है!

जो दूसरों का समय बदलते हैं,

वे ऐसे ही रोशनी के लिए

तरसते रहते हैं।

अनवरत चलते हुए,

एक दिन रुक जाते हैं सहसा—

चुपचाप।

जैसे घड़ी बंद मिलती है

किसी सुबह।

Advertisement
Show comments