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कविताएं

पुरुषोत्तम व्यास हताश... छोटी-छोटी बातों पर हो जाते हताश जीवन छोटा-सा पहाड़-सा जिये जाते... प्रेम की अहमियत जहां प्रेम की अहमियत नहीं वहां... प्रेम करना भी उचित नहीं अनुभव टेढ़ी राह पर चलने वाले सीधी राह पर चलना सिखा रहे......
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पुरुषोत्तम व्यास

हताश...

छोटी-छोटी बातों पर

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हो जाते हताश

जीवन छोटा-सा

पहाड़-सा जिये जाते...

प्रेम की अहमियत

जहां प्रेम की अहमियत नहीं

वहां... प्रेम करना भी

उचित नहीं

अनुभव

टेढ़ी राह पर चलने वाले

सीधी राह पर चलना

सिखा रहे...

जहां चलना है चलो

यहां चलना वहां चलना

चलो

मेरे अंदर के भावों को

तुम भी समझा करो...

जो सच्चा होता...

जो सच्चा होता

वह कच्चा होता

कच्चे को पकना चाहिये

तपता है वही निखरता है

सच्च के पथ पर चलना चाहिये...

प्रेम तो अभी बाकी

नहीं मिला कंचन-सा प्रेम

रहा कहता अपने आप से

प्रेम तो अभी बाकी

दिखे रूप सौंदर्य के स्वप्न साकार

लिए हिलोरे भावों ने

मिले न हृदय तार

रहा कहता अपने आप से

प्रेम तो अभी बाकी

कितना सोचा कितना समझा

मुखौटा ले हर कोई फिरता

आडंबर ही जग होता

माना नहीं मन बेचारा

रहा कहता अपने आप से

प्रेम तो अभी बाकी

खोजा अपने को

कई मर्यादा को तोड़ा

सच्च का स्वांग रचा

हृदय कई तोड़ा

रहा कहता अपने आप से

प्रेम तो अभी बाकी

प्रेम लालसा नाव

पाये कैसे किनारा

हर परिस्थिति में मुस्कुराया जाये

भावों की आपाधापी में रहा झूलता

रहा कहता अपने आप से

प्रेम तो अभी बाकी।

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