सरस्वती रमेश
प्रकृति हमें जीना और प्रेम करना सिखाती है। प्रकृति की तरह उदार कुछ भी नहीं। पेड़ हमें जीवनपर्यंत फल देता है। सूरज रोशनी और धरती अनगिनत धरोहरें। तो कोई क्यों न इस खूबसूरत प्रकृति के प्रेम में पड़े। क्यों न इसके रंगों से जीवन को भरे।
प्रकृति से कुछ ऐसी ही रंगीनियत और जीने का सलीका सीखा है कवयित्री आशमा कौल ने अपने कविता संग्रह ‘बीज ने छू लिया आकाश’ में। प्रकृति को समर्पित इस संग्रह में 60 कविताएं संकलित हैं। ये वैचारिक बोझिलता से मुक्त, अनूठे अहसासों की कविताएं हैं।
आशमा कौल ने प्रकृति और जीवन के विविध आयामों को शब्दों और भावों में बांधा है। कुछ प्रेम कविताएं हैं तो ढेरों स्त्री और प्रकृति की। इन कविताओं में स्त्री की गोद में कभी जीवन हंसता है, खेलता है, अठखेलियां करता है और कभी गहन उदासी में डूब कर क्षितिज को निहारता है।
‘रात सजी थी मेरे लिए/ तारों की डोली लिए/ प्यार की प्यास जगी/ और आसमान की गवाही में/ मैंने चुंबन लिया/ अपने चांद का।’
संग्रह की कविताएं आशा और उमंग की नाव में बैठकर जीवन की कश्ती खेती हैं।
इनके मनोभाव अपने से लगते हैं। एक स्त्री कभी बेटी, कभी बहू और कभी मां बनकर जो महसूस करती है, कवयित्री ने वही उकेरा है शब्दों में।
प्रकृति की कविताएं असल में कवयित्री का प्रेम है, जो उन्हें इस खूबसूरत धरती और इसके पेड़ पौधों, हवा, बारिश और नीले आसमान से है। बड़े सरल शब्दों में भावपूर्ण अभिव्यक्ति हैं। बीज पर एक कविता कुछ इस तरह है :-
‘वह जानता है/ उसकी डालों पर/ झूलते फूल/ उसकी छाया में खेलते बच्चे/ और कोटर में चिड़िया के अंडे/ उसकी असली जागीर है।’
समाज में मूल्यों के क्षरण और रिश्तों की बदरंगीनियत से भी कवयित्री आहत है। थोड़ा भावों और प्रतीकों को और प्रगाढ़ कर कविताओं में बेहतरी की गुंजाइश दिखती है।
पुस्तक : बीज ने छू लिया आकाश कवयित्री : आशमा कौल प्रकाशक : बोधि प्रकाशन, जयपुर पृष्ठ : 108 मूल्य : रु. 150.