योगेन्द्र नाथ शर्मा ‘अरुण’
मेरे हाथों में हरियाणा साहित्य अकादमी से सम्मानित कवि अनन्त शर्मा ‘अनन्त’ का कविता-संग्रह ‘चिड़ियों की तरह होती हैं बेटियां’ हैं, जिसमें कवि की 46 कविताएं संकलित हैं। कवि ‘अनन्त’ ने संग्रह में जब ‘अपनी बात’ लिखी तो पाठकों से कहा :-
‘चिता की आग में/ धू-धू कर/ जलता है शरीर/ तो शब्द जलते नहीं/ दसों दिशाओं में/ फैल जाते हैं आग की तरह।’
निःसंदेह, शब्द तो ‘ब्रह्म’ है, अमिट और अनंत होता है शब्द, इसीलिए शब्द व्यापक होता है। इस कविता संग्रह की कविताओं का स्वर मिलाजुला है; कहीं आम आदमी केंद्र में होता है, तो कहीं भारतीय मिथकों को केंद्र में रख कर कवि ‘राम’, ‘रावण’, द्रौपदी’ आदि को केंद्र में लाकर अपनी बात कहने लगता है। वह तो ‘राम’ से कहता है :-
‘पर आज बिलख रही हैं,/ लाखों सीतायें,/ मांग रही हैं अपना-अपना न्याय/ चिल्ला-चिल्लाकर कह रही अब,/ राम, इन रावणों को कब जलाओगे।’
कवि ‘अनन्त’ के इस संग्रह की कई कविताएं खासी विचारोत्तेजक हैं, जिनमें कवि सामाजिक, राजनैतिक और सांस्कृतिक विसंगतियों के प्रति विद्रोह के स्वर फूंकता है, जैसे ‘अब आग नहीं उगलती मेरी कविता’, ‘कम पड़ गए हैं शब्द’, ‘एक और महाभारत’, ‘एक कविता रावण के नाम’ और ‘एक दिन मॉल में’ आदि।
कवि ‘अनन्त’ की कविता कहीं-कहीं साम्यवादी सोच से बोझिल-सी हो जाती है, तो वे लिखते हैं :-
‘मैंने अपनी कविता में/ गरीबों की धड़कनों की बात की,/ डरते हुए सांसों की बात की/ मैंने अपनी कविता को/ आवाज़ बना दिया/ उन गूंगे लोगों के लिए/ जिनकी आवाज़ को दबा दिया,/ प्रशासन के रहबरों ने।’
और जाने क्यों, कवि ‘अनन्त’ अपनी सारी जिजीविषा को भूल कर कविता के अंत में कहते हैं :-
‘मेरे अंदर का शायर/ मर चुका है।’
‘अब आग नहीं उगलती मेरी कविता’ का यह स्वर कवि ‘अनन्त’ के पाठकों को क्या रास आ सकेगा?
इस संग्रह की कविता ‘एक दिन मॉल में’ सच ही कचोटती है और अमीर-गरीब के बीच बढ़ती खाई के दर्द को बयां करती है। कवि के शब्द कुरेदते हैं :-
‘मैं सोचता हूं/ कहां है मेरा भारत?/ मॉल में/ या/ यहीं-कहीं?’
कवि ‘अनन्त’ के इस संग्रह की ‘आम आदमी’ और ‘चाय अच्छी बनाता था रामलाल’ बिल्कुल अलग ही रंग और तेवर की कविताएं हैं, जो मानवीय संवेदनाओं को जगाती हैं और हमारे भीतर के इंसान को ज़िंदा कर देती हैं। इन कविताओं का चिंतन-तत्व प्रभावित करता है।
पुस्तक : चिड़ियों की तरह होती हैं बेटियां रचयिता : अनन्त शर्मा ‘अनन्त’ प्रकाशक : आनंद कला मंच प्रकाशन, भिवानी पृष्ठ : 112 मूल्य : रु. 300.