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उम्मीद की कविताएं

राजेंद्र कुमार कनोजिया नया साल बड़ा कमाल करते हैं, जो गुपचुप काम करते हैं। कभी बरसा नहीं करते, जो बादल शोर करते हैं। समंदर कितना गहरा है, कभी नापा नहीं करते। किश्तियां को हवाएं, लेके उसके पार जाती हैं।...
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सुबह की धूप में टहला करें, साहिब,

बड़ी अच्छी खिली है,

कि सेहत ठीक रहती है।

जरा-सा गुनगुनाने से,

तमन्नाओं के जंगल में,

हिरण अब भी अकेला है,

हिरण को ढूंढ़ती जंगल में

कस्तूरी भटकती है।

बड़े मासूम लगते हैं,

बुजुर्गों के खिले चेहरे,

जड़ों से लग के रहते हैं,

तो पौधे खूब फलते हैं।

हवा में मुठियां खोलो तो

आशीर्वाद आयेगा,

सुना है ईश्वर हर घर में,

हर इक कण में रहते हैं।

मैं तुमको माफ़ भी कर दूं,

चलो जो हो गया छोड़ो,

जो चेहरे पर छपा है,

रोज आईने में आयेगा।

मैं अगले साल भी,

मिलने तुम्हारे गांव आऊंगा,

जो घर की देहरी से हो शुरू,

वो बरकत भी देता है।

सारा साल सांसों में,

गांव की मिट्टी गमकती है।

मुबारक हो तुम्हें फिर से,

ये नया साल पच्चीस का।

तुम्हें ख़ुशियां मिलें सारी,

तो थोड़ा दुख रहे शामिल।

जरा नमकीन मौसम हो तो,

जिंदगी स्वाद लाती है।

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