व्यंग्यकार बलदेव सिंह महरोक की नई किताब आई है कविताओं पर। किताब का शीर्षक है ‘बात है पर छोटी सी।’ आधुनिक शैली में लिखी गई 42 कविताओं में कवि ने पीड़ा दुख, हताशा और उम्मीदों पर संक्षेप में, लेकिन सारगर्भित तरीके से अपनी बात कही है। लोक और तंत्र की बात हो या किसान और जनता की, या फिर आजकल के लेखकों की—कवि ने व्यंग्य की शैली में धारदार तरीके से विषयों को उठाया है।
‘हे जनता’ शीर्षक कविता में कवि कहते हैं—‘तुम एक वोटर हो, तुम्हें बस एक बटन दबाना है, बाकी 5 साल नेताजी तुम्हारा बटन दबाएंगे...’
कई कविताओं को पढ़कर माहौल निराशाजनक लगता है, पर अगले ही पल प्रतीत होता है कि यह निराशा समाज में फैली विषमताओं की वजह से है। कवि समाज को आगाह करते दिखते हैं।
कविता ‘दर्द में कभी मुस्कुराओ तो जानूं’ में कवि लिखते हैं—‘गीत नफरतों के गाने की आदत है तुम्हें, एक मोहब्बत का गीत गुनगुनाओ तो जानूं।’
सत्ताधारियों के खिलाफ बोलना हिम्मत की बात होती है, क्योंकि माहौल ऐसा बना दिया गया है कि लोग कुछ कहने से डरते हैं। कविता ‘और वह मर गई’ में कवि ने इस स्थिति को बहुत मार्मिक ढंग से उजागर किया है। अंतिम पंक्तियां हैं—‘सुबह उठा देखा, कविता मर चुकी थी, बगल में पड़ी उसकी लाश मुझे चिढ़ा रही थी।’
आधुनिक शैली में लिखी गई ये कविताएं समाज का आईना दिखाती हैं— कुछ ही पंक्तियों में बहुत कुछ कह जाती हैं।
पुस्तक : बात है पर छोटी सी लेखक : बलदेव सिंह महरोक प्रकाशक : यूनि क्रिएशन्स पब्लिशर्स, कुरुक्षेत्र पृष्ठ : 110 मूल्य : रु. 150.