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स्त्री चेतना की कविताएं

पुस्तक समीक्षा
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पिछले दो दशक से कविताओं में स्त्री चेतना की बयार-सी बही है। उसी का नतीजा है कि कविताओं में स्त्रियों की जिंदगी से जुड़े तमाम पहलुओं को गहराई से देखा, समझा जाने लगा है। ऐसी कविताएं स्त्री को परिवार और समाज में उचित स्थान दिलाने की कोशिश हैं। ऐसी ही कोशिश दिखती है कविता संग्रह ‘नेह के धागे’ में। इसे रचा है कवयित्री रेखा मित्तल ने। संग्रह की कविताओं में प्रकृति, प्रेम का सान्निध्य, रिश्तों की उलझनें, स्त्री मन का अनंत वितान और इंसानी जज्बात हैं। इन सबको सहज और सरल लहजे में अभिव्यक्त किया गया है।

संग्रह की प्रेम कविताएं मखमली अहसास सी छूती हैं। जबकि स्त्री और मां पर लिखी कविताएं भावुक करती हैं।

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‘बिना पूछे ही पढ़ लेती है

मेरे दिल का सारा हाल

बिना बताए ही जान लेती है

मेरी भूख का सवाल

कैसे कह दूं अनपढ़ है मेरी मां।’

कवयित्री ने जीवन के विभिन्न पहलुओं पर कलम चलाई है। प्रेम विषय पर लिखी उनकी कविताओं में प्यार, दुलार, इकरार के साथ यह प्रश्न भी है, क्या पत्नी को सिर्फ रोटी, कपड़ा और आश्रय प्रदान करना प्रेम है? आखिर पत्नी प्रेमिका सरीखी क्यों नही होती?

कविताएं स्त्री चेतना से लबरेज हैं और अपने परिवेश के प्रति चौकन्नी। मगर ये भावावेश में लिखी कविताएं अधिक जान पड़ती हैं। इनमें नए बिंबों, प्रतीकों का अभाव है। भाव की भाषा साधारण है। साहित्यिक गतिविधियों में संलग्न कवयित्री से इससे बेहतर की उम्मीद की जा सकती है।

फिर भी, यह संग्रह समकालीन कविता में एक संवेदनशील स्वर की उपस्थिति दर्ज कराता है,जो मन को छूता है और सोचने को विवश भी करता है।

पुस्तक : नेह के धागे कवयित्री : रेखा मित्तल प्रकाशक : समदर्शी प्रकाशन, गाजियाबाद पृष्ठ : 129 मूल्य : रु. 250.

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