जीवन की गहराइयों में तैरती कविताएं
कवि भवानी शंकर तोसिक का काव्य संग्रह ‘कांटों सा जीवन मधुबन’ ऐसी रसलहरी है, जो विषय-वस्तु एवं शिल्प की दृष्टि से परिपक्व है और वैचारिक स्तर पर पाठक को कुछ सोचने का संदेश देती है।
संग्रह में छोटी-छोटी 84 कविताएं हैं, जो जीवन की विविध समस्याओं, हाव-भावों, सामाजिक विसंगतियों को सकारात्मक ढंग से प्रस्तुत करती हैं। ‘झूठ का बोलबाला’ कविता का व्यंग्य स्वतः उभर आता है :-
‘मैं ने सदैव/ सच का दीप जलाया/ कुछ को भाया।
सच पूछो तो/ मैंने अपने आपको/ अकेला ही पाया।’
कवि अपनी कविताओं में समाज में व्याप्त असमानता, आस्थाओं एवं विश्वासों, संस्कारों, मातृभाषा, असंतोष, रोटी और रिश्वत आदि अनेक विषयों की चर्चा बड़े ही सटीक ढंग से करता है। व्यंग्य की धार भी बराबर चलती रहती है। कम शब्दों में अधिक कहने का गुण कवि की कविताओं को सार्थकता प्रदान करता है। सहज, स्वाभाविक ढंग से, सरल परंतु प्रवाहमयी भाषा में प्रस्तुति रचना को अतिरिक्त आयाम प्रदान करती है।
तोसिक की कविता ‘तुम क्यों बेचैन हो?’ एक अलग रंग की रोचक कविता है। इससे एक उद्धरण :-‘भूलने की आदत से मैं परेशान हूं/ तुम्हें तो हर बात याद रहती है/ फिर तुम क्यों बेचैन हो?
मजदूरी नहीं मिली, बच्चे भूखे सो गए/ परेशान हूं/ स्वादिष्ट व्यंजनों से भरा है पेट तुम्हारा/ फिर तुम क्यों परेशान हो?’
भूमिका में डॉ. विनोद सोमानी ‘हंस’ तथा श्रीमती कीर्ति वागोरिया ने क्रमशः काव्य संग्रह को ‘सृजन के मधुबन में अनुभवों की महकती कलियां’ तथा ‘झरने की फुहारों सा आनंद देती कविताएं’ कहा है, जो बिल्कुल उपयुक्त है।
पुस्तक के प्रारंभ में ‘मेरे मन की बात’ में लेखक ने अपनी रचना प्रक्रिया की ओर संकेत करते हुए लिखा है—साहित्य सृजन मात्र शब्दों का संयोजन नहीं होता, वरन साहित्यकार अपने भोगे हुए यथार्थ एवं जीवन की सच्चाइयों और अच्छाइयों को अपने भीतर उतार कर रचना तक अनुभूत की गई एक नई सृष्टि लेकर सामने आता है।
सही कहा गया है कि कविता शब्दों की सांठगांठ नहीं होती और न ही जोड़-तोड़। यह तो भावों का आस्वाद होती है, जो गुदगुदाती भी है और रुलाती-हंसाती भी है।
पुस्तक : कांटों सा जीवन मधुबन लेखक : भवानी शंकर तोसिक प्रकाशक : साहित्यागार, धामाणी मार्केट, जयपुर पृष्ठ : 115 मूल्य : रु. 250.
