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प्रकृति के साथ सहगान करती कविताएं

पुस्तक समीक्षा
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डॉ. सुदर्शन गासो

धर्मपाल साहिल हिन्दी और पंजाबी भाषा में निरंतर लिखने वाले कर्मशील साहित्यकार हैं। इन्होंने अपने समाज, संस्कृति और प्रकृति पर प्रेमपूर्वक लिखने का प्रयास किया है और इस प्रयास की सराहना भी हुई है। कवि प्र‌कृ‌ति को ईश्वरीय स्वरूप मानता है। प्रकृति के साथ प्रेम से ही इस संग्रह की कविताओं ने जन्म लिया। कवि प्रकृति को जानने, पढ़ने, उसका आनंद लेने, उसका आदर व सम्मान करने का भी आग्रह करता है।

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प्रकृति के सतरंगों का उल्लेख करना कवि अपना धर्म समझता है। मूल्यांकन करते हुए कहता है कि प्रकृति का हृदय बहुत विशाल है। मनुष्य को प्रकृति से बहुत कुछ सीखने की जरूरत आज भी बनी हुई है। प्रकृति का अंधाधुंध दोहन ठीक नहीं होता। इसका खमियाजा सभी को भुगतना पड़ता है। प्रकृति से प्रेरणा लेते हुए कवि शिक्षा देता कहता है कि जब आदमी दूसरों की भलाई के लिए सोचता है, कर्म करता है तो उसका योगदान अमूल्य और ऐतिहासिक बन जाता है। आदमी महा-मानव बनने की ओर अग्रसर होने लगता है :-

अपने गिर्द घूमता पानी भंवर बन जाता है। अपने गिर्द घूमती हवा बवंडर बन जाता है।

पर दूसरों के लिए दूसरों के गिर्द घूमता, इनसान पैग़म्बर बन जाता है।

कवि के अनुसार आज के दौर का इनसान ऐसे कुकृत्य करने लगा है जिसे देखकर रूह कांपने लगती है। कवि ऐसी स्थितियों पर व्यंग्य भी कसता है। प्रकृति में प्रभु के दर्शन करके कवि आत्मतुष्टि प्राप्त करता है। कवि प्रकृति के साथ सहगान करता दिखाई देता है। प्रकृति को बिगाड़ने में मनुष्य की नकारात्मक भूमिका का भी जिक्र करता है।

प्रेम की ध्वनि साहिल की कविताओं में सहज रूप में सुनाई देती है। यह ध्वनि कानों को सुकून भी प्रदान करती है। साहिल के अनुसार गुणों का खजाना मनुष्य के भीतर ही होता है। जरूरत उसे ढूंढ़ने की ही होती है। कवि ने युवा पीढ़ी के प्रवास की समस्या का भी जिक्र किया है। साथ ही, शांति का संदेश भी दिया है। कवि का प्रयास सराहनीय कहा जा सकता है।

पुस्तक : प्रकृति के प्रेम पत्र कवि : डाॅ. धर्मपाल साहिल प्रकाशक : अमन प्रकाशन, नयी दिल्ली पृष्ठ : 107 मूल्य : रु. 260.

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