मनमोहन गुप्ता मोनी
साहित्य तथा रक्तदान अभियान को समर्पित मधुकांत का नाम कोई नया नहीं है। अभी तक वह 140 पुस्तकें लिख चुके हैं। हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा उनकी कई पुस्तकें पुरस्कृत हो चुकी हैं। उनकी एक एकांकी महाराष्ट्र में 12वीं कक्षा की हिंदी पाठ्य पुस्तक में भी सम्मिलित है। उनकी बाल नाट्यमाला पुस्तक में छात्रों के लिए 11 शिक्षाप्रद नाटक सम्मिलित हैं। इन नाटकों की विशेषता यह है कि स्कूल और कॉलेज स्तर के विद्यार्थी इनका आसानी से मंचन कर सकते हैं।
मधुकांत के नाटकों की एक विशेषता यह होती है कि वे किसी खास मुद्दे को लेकर बच्चों के मन में चेतना जगाने का भाव रखते हैं। नाटक ‘जंगल में मंगल’ में उन्होंने पशु-पक्षियों को पात्र बनाकर मानव को विभिन्न कुरीतियों से मुक्त रहने का संदेश दिया है। पूरा नाटक बहुत ही सहज तरीके से लिखी गयी काव्यात्मक रचना है।
इसी प्रकार ‘हमजोली वृक्ष’ में वृक्षों को पात्र बनाया गया है। पीपल, जामुन, नीम, आम, मौलसिरी, शहतूत आदि पेड़ों के माध्यम से एक दूसरे की चिंता करने का संदेश बालमन पर सहज और अनुकूल प्रभाव छोड़ता है।
मधुकांत तन, मन व धन से रक्तदान अभियान से जुड़े हैं, इसलिए यह तो संभव नहीं कि इस विषय वह न लिखें। ‘रक्तदान महादान’ नाटक में उन्होंने हल्के-फुल्के अंदाज में रक्तदान की महत्ता का वर्णन किया है। ‘प्रवेश’ नाटक में शिक्षा सत्र की शुरुआत का ताना बाना बुना है तो ‘मैं पढ़ूं कहां’ को राष्ट्रीय शिक्षा दिवस को आधार बनाकर लिखा गया है।
छात्रों के जीवनकाल में कई बार ऐसा भी होता है जब वे एक-दूसरे को गालियां देने लगते हैं। इससे लड़ाई-झगड़ा भी हो जाता है। ‘आपकी गाली आपके पास’ नाटक ऐसी स्थिति में शिक्षाप्रद साबित हो सकता है।
मधुकांत के नाटक उद्देश्यपरक होते हैं तथा बच्चों के सर्वांगिक विकास के साथ ही इनमें मंचन की पूर्ण संभावना होती है।
पुस्तक : बाल नाट्यमाला लेखक : मधुकांत प्रकाशक : कृष्णा पब्लिशिंग हाउस, दिल्ली पृष्ठ : 96 मूल्य : रु. 250.