सुभाष रस्तोगी
बहुमुखी व्यक्तित्व और बहुआयामी प्रतिभा के धनी राजेन्द्र गौतम की अब तक चार काव्य कृतियां, एक ललित गद्य की कृति व पांच आलोचना कृतियां प्रकाशित हो चुकी हैं, लेकिन मुख्यत: वे एक नवगीतकार के रूप में जाने जाते हैं और ‘बरगद जलते हैं’, ‘पंख होते हैं समय के’ व ‘गीत पर्व आया है’ गौतम के चर्चित नवगीत – संग्रह हैं। उनकी सद्यः प्रकाशित काव्य-कृति ‘ठहरे हुए समय में कुछ प्रेम कविताएं’ में सत्रह और सत्तर के दरमियान रचित प्रेम कविताएं संगृहीत हैं। अपने समवेत पाठ में यह प्रेम कविताएं अपनी पत्नी-परिणीता को समर्पित उत्कट प्रेम की कविताएं हैं। हिन्दी में प्रेम कविता की अपनी एक विशष्ट परंपरा रही है। अज्ञेय, नरेश मेहता और धर्मवीर भारती की प्रेम कविताएं सदैव काल के भाल पर दर्ज रहेंगी। धर्मवीर भारती की अमर प्रेम कविता ‘कनुप्रिया’ का स्थान हिन्दी प्रेम कविता परंपरा में अन्यतम है।
राजेन्द्र गौतम के इस सद्यः प्रकाशित प्रेम कविता संग्रह ‘ठहरे हुए समय में कुछ कविताएं’ की अलग से रेखांकित की जाने वाली खासियत यह है कि प्रेम की जो उत्कटता, समर्पण और सादाबयानी जो सत्रह में है, वह सत्तर के दरमियान रचित कविताओं में भी है। देखें सत्रह और सत्तर के दरमियान रचित प्रेम कविताओं के दो उदाहरण जो इस मान्यता की पुष्टि करते हैं:-
उन शीतल सुरभित सांसों को
भुला नहीं मैं पाऊंगा
अधराें का वह राग मधुर
जीवन भर दुहराऊंगा
फूलों, कलियाें या पल्लव में
त्रिय को खोजा चाहूंगा
मई, 1971
2019 में रचित ‘ख़्याल नहीं है कविता’ का यह कवितांश देखें :-
नहीं
सिर्फ ख़याल नहीं है यह
ख़याल की गुलाबी पंखुरियां कहां होती हैं
जबकि होठों ने
इन्हीं पंखुरियों का मकरन्द दिया है
राजेन्द्र गौतम की इन प्रेम कविताओं की दूसरी अलग से रेखांकित की जाने वाली खासियत यह है कि इन कविताओं का कंटेंट और भाषा पंत के ‘पल्लव’ की आरंभित कविताओं का स्मरण अवश्य कराता है। ‘स्वर्णपंखी झील’ को इसके साक्ष्य के रूप में देखा जा सकता है। इस लिहाज से ‘अलविदा वसन्त’ की यह पंक्तियां भी काबिलेगौर हैं– ‘एक दिन/ वह प्रफुल्लित वल्लरी/ मेरी गोद में बेहोश पड़ी थी/ और कष्टकित हो उठी थी/ मेरे स्पर्श को पा।
इन कविताओं में सामान्यीकरण का अद्भुत गुण है और यह पाठकों से आत्मीय संवाद स्थापित कर लेती हैं। राजेन्द्र गौतम की इन प्रेम कविताओं के नादात्मक सौंदर्य की अनुगूंज भी पाठक की चेतना को देर तक गुंजायमान किए रहती है। देखें एक कविता ‘थिरकते अर्थ’ का जो उसकी बड़ी पुख्तगी से पुष्टि करती हैं–
डायरी के पन्नों में सोई सांसें
महकती हैं
रात भर मेरे साथ
एक-एक शब्द
शरद की पूर्णिमा में
राधा बन जाता है
हर अर्थ निकलता है
श्याम-सा
दरअसल, प्रेम के हजार रंग हैं और राजेंद्र गौतम की इन प्रेम कविताओं का प्रत्येक रंग संपूर्णता का एक सार्थक बिंब रचता प्रतीत होता है।
पुस्तक : ठहरे हुए समय में कुछ प्रेम कविताएं लेखक : राजेंद्र गौतम प्रकाशक : अनुज्ञा बुक्स, नयी दिल्ली पृष्ठ : 128 मूल्य : रु. 250.