रतन चंद ‘रत्नेश’
जीवन कहानियों सरीखा होता है। इन कहानियों में हर तरह के रंग होते हैं। फीके और गाढ़े, उदासी- उत्साह के, खुशी और गम के। अनिल गांधी की कुल आठ कहानियों के संग्रह ‘न होने वाला इंतज़ार और सात सतरंगी कहानियां’ में जीवन के ऐसे ही विभिन्न रंग समाहित हैं जो पूर्णतः मनोवैज्ञानिक धरातल पर रचे गए हैं। अत्यंत सहजता से सम्प्रेषणीय इन कहानियों में मानव-मन के कई रंग रह रह कर उभरते हैं। जहां सर्वत्र भ्रष्टाचार का बोलबाला हो, वहां भी कहीं-न-कहीं ईमानदारी अपना रंग दिखा ही देती है, ‘बेईमान का ईमान’ इसी पर आधारित है। ‘एक मॉडर्न किस्सागोई’ वर्तमान समाज में युवा पीढ़ी में व्याप्त तथाकथित खुली मानसिकता व उनके वैवाहिक रिश्तों की यथार्थ पड़ताल करता है।
संग्रह की सभी कहानियां अंतर्मन की विसंगतियों, लालसाओं और तनावों को बारीकी से उद्घाटित करती हैं। टॉयलेट में वाटर-जेट का न होना, किसी शख्स को कितना परेशान कर सकता है, ‘जेट’ इसे बखूबी दर्शाता है। ‘केश’ संग्रह की बेहतरीन कहानी है जिसमें धर्म का द्वंद्व झलकता है। यहां केंद्रीय पात्र का यह कथन द्रष्टव्य है– ‘केश कटवाना मेरे लिए ऐसे है जैसे अपना वजूद खोना। मुझे सिख मेरी मर्जी के बगैर बनाया गया। हिंदू मां-बाप का ऐसा करना कानूनन ठीक था या गलत मैं नहीं कह सकता। इतना जरूर कहूंगा कि अब मेरी मर्जी के बगैर मुझे धर्म बदलने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता।’
‘सात घंटे आठ मिनट’ एक पत्नी की अपूर्ण इच्छाओं से उपजी पारिवारिक उलझनों का मनोविश्लेषण है जबकि ‘भाई जान’ अफसरशाही में व्याप्त अहंकार और तुष्टीकरण का। ‘न होने वाला इंतज़ार’ एक प्रेमकथा है जिसे अंजाम तक ले जाने में मुश्किल होती है। लिहाजा उसे खूबसूरत मोड़ देकर छोड़ दिया गया है। इन कहानियों को पढ़ते समय मोहन राकेश जगह-जगह मन में दस्तक देते से लगते हैं जो अंतिम कहानी में जाकर स्पष्ट हो जाता है–‘उसका साहित्य-पठन बहुत गहन था लेकिन मेरी दुनिया साहित्य के नाम पर केवल मोहन राकेश थी।’
पुस्तक : न होने वाला इंतज़ार और सात सतरंगी कहानियां लेखक : अनिल गांधी प्रकाशक : हिन्दी बुक सेंटर, नयी दिल्ली पृष्ठ : 103 मूल्य : रु. 150.