आलोक पुराणिक
ज्ञान चतुर्वेदी का उपन्यास स्वांग बहु-परतीय उपन्यास है। परत के अंदर परत और उसके अंदर परत अनंत गहराई लिए हुए यह उपन्यास भारतीय समाज के दोगलेपन, भारतीय लोकतंत्र के नैतिक स्खलन और समग्र व्यवस्था के लुटेरेपन को रेखांकित करता है। बहुत सहज तरीके से यह उपन्यास समाज का चरित्र उघाड़ता है-स्वांग में दर्ज है :- कुछ गवाह पैसा लेकर मान गये, कुछ को पैसा और तमंचा दोनों लगा। …तारीफ गोयल वकील साहब की भी खूब हो रही है। सभी सहमत हैं कि अगर आप में गोयल वकील करने लायक हैसियत हो तो फिर ठाठ से अपने वैरी का मर्डर करें और ऐसेई ठाठ से जेल के बाहर भी आ जाएं।
हत्यारों को पूजने वाला समाज, पत्नी पीटने को एकदम सहज मानने वाला समाज, इसी समाज से ऐसे स्कूल निकल रहे हैं, जो स्कूल दिखते हैं, पर स्कूल हैं नहीं, वो हैं नकल के कारोबार केंद्र। स्कूल का स्वांग चल रहा है। यह स्वांग ठीक से चले, इसीलिए थाना है, जिसका मूल काम तो वैसे कानून की रक्षा करना है। पर थाने पर कानून की कम, समृद्ध और असरदार की रक्षा ज्यादा मुस्तैदी से की जाती है। लोकतंत्र के खंभे के तौर पर बिस्मिल पत्रकार हैं, पर मूलत: बिचौलिया हैं। कुल मिलाकर जिससे आप जिस काम की अपेक्षा करें, वह वही काम नहीं कर रहा है। पंडितजी स्कूल और राजनीति को अपने असर के लिए इस्तेमाल करते हैं।
सर, मैं ईमानदारी नहीं छोड़ पाऊंगा। क्षमा करें।
मूर्खता को ईमानदारी मानने की भूल मत करो।
मूर्खता और ईमानदारी पर्यायवाची हो लिये हैं, यह बात साफ होती है गजानन बाबू की हालत से। गजानन बाबू स्वंतत्रता सेनानी हैं, पवित्र बातें करते हैं जैसी वे आजादी मिलने से पहले करते थे। गजानन बाबू चुटकुला बन गये हैं। उन पर लोग हंसते हैं। गजानन बाबू विक्षिप्त हो गये हैं, उनकी बातों पर लोग हंसते हैं और उन्हे गंभीरता से नहीं लेते। कुल मिलाकर उपन्यास के केंद्र में कोटरा गांव है। कोटरा गांव के नेता अपराधी हैं। स्कूल के संचालक विद्या प्रेमी नहीं हैं, खालिस नकल कारोबारी हैं। पत्रकार बिस्मिल सिर्फ शब्दों की मंडी सजाते हैं, यूं वह पत्रकार कहलाते हैं खुद को। कुल मिलाकर कोटरा एक ऐसा इलाका है जहां हर ताकतवर आदमी अपनी ताकत को बढ़ाने में लगा हुआ है। आम आदमी है, पर वह लाइन में लगा है। परेशान हाल है। दुखी है, परेशान है। उसके बारे में चिंता करने के जुमले चुनावों के आसपास बोल दिये जाते हैं।
कोटरा कुल मिलाकर भारत की मुकम्मल तस्वीर है, जिसे देखकर साफ होता है कि हमारे सामने ऐसी विकट भयावहता है, जो दिखने में परम दिव्य और भव्य है।
पुस्तक : स्वांग लेखक : ज्ञान चतुर्वेदी प्रकाशक : राजकमल पैपरबैक्स, नयी दिल्ली पृष्ठ : 384 मूल्य : रु. 399.