‘अहंकार के अंकुर’ और ‘देख कबीरा हंसा’ पुस्तकों के बाद विजय ‘विभोर’ का लघुकथा संग्रह ‘फिर वही पहली रात’ पाठकों के हाथ में है, जिसमें जीवन के विभिन्न रंगों को दर्शाती उनकी 92 लघुकथाएं शामिल हैं। इन रचनाओं में उद्दात मानवीय प्रेम, रिश्तों की टूटन, मानवीय मूल्यों को पराभव, नारी स्वातंत्र्य, सामाजिक विद्रूपता तथा सामाजिक जीवन के उज्ज्वल पक्ष का कथानक लिये रचनाएं पाठकों को उद्वेलित करती है। कमोबेश अधिकांश रचनाओं के कथानक समकालीन समाज का आईना दिखाते हैं।
पुस्तक : फिर वही पहली रात रचनाकार : विजय विभोर प्रकाशक : विजय विभोर, रोहतक पृष्ठ : 112 मूल्य : रु. 150.