अशोक गौतम
जब पूरा विश्व कोरोना के भय, आतंक, संत्रास में जी रहा हो और दूसरी ओर व्यंग्यकार अपने व्यंग्यों के माध्यम से कोरोना से त्रस्त मानवता को हौसला देने में जुटा हो तो ऐसे संग्रह पर नजर न जाए, ये मुमकिन ही नहीं। व्यंग्य परिस्थितियों के आगे समर्पण कर रोना नहीं सिखाता, उसे जीते हुए जीतते हुए हंसना सिखाता है। अपने को बनाए रखना सिखाता है। ऐसा ही कुछ संवाद व्यंग्य के पाठकों के साथ डॉ. आलोक सक्सेना का महामारी के दिनों में रचा व्यंग्य संग्रह ‘सेनिटाइजर युक्त बारिश का इंतजार’ करता है। प्रस्तुत व्यंग्य संग्रह में डॉ. सक्सेना के 51 व्यंग्य संकलित हैं।
कोरोना ने जहां एक ओर हमारे जीवन की गति पर रोक लगाने की कोशिश की, वहीं दूसरी ओर नई विसंगतियों को भी समाज में जन्म दिया। इन्हीं विसंगतियों पर व्यंग्यकार ने अपने व्यंग्य संग्रह ‘सेनिटाइजर युक्त बारिश का इंतजार’ में भरपूर व्यंग्यात्मक प्रहार किए हैं। व्यंग्य संग्रह के अनचाहे मेहमान हैं कोरोना जी, आयो रे आयो कोरोना आयो रे, मोबाइल कॉलर ट्यून का संक्रमण, लॉकडान है भाई लॉकडाउन है, इतना सन्नाटा क्यों है भाई, होली की याद और चुल्लू भर पानी की तलाश, लॉकडाउन में कबूतरों का योगदान, जान के साथ-साथ जहान भी, उपद्रवी की कब्र, बाबागिरी मुनाफे का धंधा, देश नई चाल चलने को तैयार आदि ऐसे व्यंग्य हैं जो व्यंग्य और पठनीयता दोनों का एकसाथ निर्वाह करने में सक्षम दिखते हैं।
इस व्यंग्य संग्रह के व्यंग्यों की खूबसूरती व्यंग्यों की प्रवाहदार शैली है जो किसी भी पाठक को अपने साथ चलने को विवश कर देती है।
पुस्तक : सेनिटाइजर युक्त बारिश का इंतजार व्यंग्यकार : डॉ. आलोक सक्सेना प्रकाशक : अयन प्रकाशन, महरौली पृष्ठ : 199 मूल्य : रु. 400.